विविध समाचार
- Post by Admin on Mar 18 2018
लो फिर तना कुहरा घना ! हादसों का फिर सिलसिला किससे करें शिकवा गिला गूफ्तगू में राजा यहाँ फिर प्रजा पर पहरा बना । डूबते को डूब जाना उस पर मना कुनमुनाना तिमिर से क्यों रौशनी का खौफ इतना गहरा छना । यह समय का चक्र ऐसा राज रथ है बक्र कैसा केसरी तन सिमटा हुआ मेमनों सा दुहरा बना । read more
- Post by Admin on Mar 18 2018
ये धुंध कुहासा छंटने दो रातों का राज्य सिमटने दो प्रकृति का रूप निखरने दो फागुन का रंग बिखरने दो, प्रकृति दुल्हन का रूप धर जब स्नेह – सुधा बरसायेगी शस्य – श्यामला धरती माता घर -घर खुशहाली लायेगी, तब चैत्र-शुक्ल की प्रथम तिथि नव वर्ष मनाया जायेगा आर्यावर्त की पुण्य भूम read more
- Post by Admin on Mar 18 2018
नदी का सतत प्रवाह कलकल छलछल करती उछलती मचलती लहरें जिसे चूमने उतरती हैं सूरज की बेटियाँ बहनों के संग आ जाती हैं नृत्य करती हवाएं सर्दी के दिनों में नदी की कोख में जा समाती है आग और इन सबको अपनी छाती में संभाले पृथ्वी कभी इतराती नहीं और अपनी नित्य सखी प्रकृति से गलबहियाँ करती पर्वत से सागर तक नदी को बहने देती है अनवरत प read more
- Post by Admin on Mar 18 2018
सड़क के किनारे खुले आकाश के नीचे सिसकता है एक नागफनी ! रोज मातम मनाता है और एक दिन सिर उठाकर पूछता है आकाश से कि मैंने कौन – सा ऐसा पाप किया जो मुझे निकाल दिया गया फूलों के बाग से | क्या मेरे काँटे चुभते है सबके दिल में ? अरे | अगर काँटे ही मेरे निर्वासन का कारण है तो निकाल दो उस गुलाब को भी फूलों के बाग से | @रजनीश read more