परिधि से बाहर कविता : डॉ. संजय पंकज

  • Post By Admin on Mar 18 2018
परिधि से बाहर कविता : डॉ. संजय पंकज

लो फिर तना

कुहरा घना !

हादसों का

फिर सिलसिला

किससे करें

शिकवा गिला

गूफ्तगू में

राजा यहाँ

फिर प्रजा पर

पहरा बना ।

डूबते को

डूब जाना

उस पर मना

कुनमुनाना

तिमिर से क्यों

रौशनी का

खौफ इतना

गहरा छना ।

यह समय का

चक्र ऐसा

राज रथ है

बक्र कैसा

केसरी तन

सिमटा हुआ

मेमनों सा

दुहरा बना ।