प्यार की कोई उम्र नहीं होती. पढ़िए एक सदाबहार लव स्टोरी अनु रॉय की क़लम से.

  • Post By Admin on Jun 10 2018
प्यार की कोई उम्र नहीं होती. पढ़िए एक सदाबहार लव स्टोरी अनु रॉय की क़लम से.

मुंबई :-  शादी की चालीसवीं सालगिरह थी. किसी और को तो क्या ही याद रहता ख़ुद पतिदेव तक भूल हुए थे. सुबह उठ कर बेटा-बहू को नाश्ता बना कर दिया. उनके ऑफ़िस जाने के बाद बाल धो कर नहाईं और मंदिर जाने को हुई ही थी कि पतिदेव ने एक कप चाय की डिमांड रख दी.

ग़ुस्सा तो आया. सोचा कि चाय के बदले गर्म पानी सिर पर डाल दे बूढ़उ के मगर मन मसोर कर चाय बना कर दे आयी. 

फिर मंदिर चली गयी. थोड़ी देर में वापिस लौटी तो पतिदेव कहीं जाने को तैयार दिखें. कुछ बोल पाती उनसे इसके पहले वो स्कूटर निकाल कर चल दिए.

बेचारी अपना दो निवाला खाना खा कर बिस्तर पर लेट गयीं. सामने दीवार पर शादी के तुरंत बाद स्टूडियो में खिंचाया हुआ पहला फ़ोटो टंगा दिख रहा था. फ़ोटो में दूल्हे राजा की नज़र दुल्हन पर और दुल्हन की टेढ़ी नज़र कैमरे की तरफ़ थी. 

फ़ोटो को देखते हुए न जाने कब नींद आ गयी. आँख दरवाज़े की घंटी सुन कर खुली. देखा तो कोई सात बज गये थे. सोचा बेटा-बहू ऑफ़िस से लौटे आये होंगे मगर दरवाज़े पर पतिदेव सब्ज़ी का थैला लिए खड़े थे. जिसमें से मूली का पत्ता झाँक कर मैडम को निहार रहा था.

“आ गये. कहाँ गये थे. इ लंच किए बिना जाना ज़रूरी था. कुछो याद नहीं रहता है इनको.” भुनभुनाती हुई सब्ज़ी का थैला ले अंदर चली गयी.

वो वहीं कुर्सी पर जमते हुए फिर से चाय की डिमांड कर बैठे.

झोला किनारे रख चाय बना कर ले आयीं. बेटा-बहू अब भी नहीं लौटे थे. दोनों चुप-चाप चाय ख़त्म करने लगे.

कप लेकर उठने को हुई कि बेटा का फ़ोन आया और उसने ये एलान कर दिया कि आज वो ससुराल में रहेगा क्योंकि सास की तबियत ख़राब है.

अब मैडम का दुःख ग़ुस्से में बदल चुका था. शादी की सालगिरह नहीं याद थी कोई बात नहीं मगर सास बीमार है इसलिए बेटा ससुराल में जा कर रह रहा ये पीड़ादायी हो रहा था उनके लिए.

“मेरा सिर दुःख रहा. हम सोने जा रहे हैं. दिन का लौकी पड़ा है आप दही के साथ खा लीजिएगा,” पतिदेव को बोल कर बिस्तर पर जा पहुँची और बत्ती बुझा पेट के बल लेट कर अब क़िस्मत को कोसने लगी. जैसा पति वैसा ही बेटा. हूँ ह.

कुछ आहट पा कर पीछे की तरफ़ मुड़ी तो देखा पतिदेव एक दोना लिए इनकी तरफ़ चले आ रहे थे. 

“खाने के बदले कहाँ चले आ रहे हैं अंधेरे में? लाइट जला लीजिए नहीं तो चोट लग जाएगी!”

इतना बोलने तक वो बिस्तर के नज़दीक पहुँच चुके थे. दोने में से मोगरे की फूल की ख़ुशबू आ रही थी. पतिदेव अब धीरे से उस पीली रौशनी में उनको गजरा बाँधने लगे.

“ये क्या है अब?”

“तुम्हें यही फूल पसंद है न! आज बाज़ार से लौटते वक़्त लेता आया. और जलेबी भी लाया हूँ. चलो बाहर,” कह कर उनका हाथ थामें बाहर निकलने लगे. 

बाहर टेबल पर एक थाली में जलेबी और बग़ल में पीली बॉर्डर वाली साड़ी रखी नज़र आयी.

“इसे पहन लो मनु. आज का दिन भला भूल सकता हूँ क्या! आज ही के दिन तो मेरी ज़िंदगी का चैन-सकून मुझ से छिना गया था. मैंने एक लड़ाकू को अपना हिस्सा मान कर अपना लिया था.”

“अच्छा! याद था तो सुबह क्यूँ नहीं बोलें?”
“तुमको क्या लगता है क्यूँ बेटा आज ससुराल गया है? हाँ!”
“कैसे हैं न? क्यूँ भेजा उसको?”
“ताकि मैं यहाँ अपनी दुल्हन के साथ रह सकूँ!” कहते हुए जलेबी का एक टुकड़ा उठा उनके मुँह में लगा दिया.

उनके चेहरे पर अब सच में दुल्हन वाला नूर फैलने लगा था. पीली साड़ी और टहटह लाल सिंदूर में नई दुल्हन जैसी लगने लगी. पतिदेव अपनी उँगलियों से उनकी एड़ी में अब महावर लगा रहे थे बैठ कर और उनकी उँगलियाँ उनके बालों में घूम रही थी.