कवि संजय पंकज को आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री सम्मान

  • Post By Admin on Apr 12 2024
कवि संजय पंकज को आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री सम्मान

मुजफ्फरपुर : काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी के हिंदी विभाग के आचार्य रामचंद्र शुक्ल सभागार में कविताम्बरा पत्रिका, विश्व हिंदी शोध संवर्धन अकादमी तथा बीएचयू हिंदी विभाग के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय समारोह में कवि गीतकार डॉ संजय पंकज को 'आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री सम्मान' से अलंकृत किया गया। सम्मान स्वरूप प्रशस्ति पत्र, सम्मान पत्र, स्मृति चिन्ह, पुष्पमाल्य , चादर और पुस्तकें भेंट की गईं।

बीएचयू हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. वशिष्ठ अनूप की अध्यक्षता तथा अन्य गणमान्य साहित्यकारों की उपस्थिति में डॉ. संजय पंकज के रचनात्मक व्यक्तित्व पर बोलते हुए आलोचक डॉ. राम सुधार सिंह ने कहा कि "साहित्य की लगभग सारी विधाओं में डॉ. पंकज गंभीरता से निरंतर लिख रहे हैं। इनके गीत छंद की कसौटी, भाषा के संतुलन और शिल्प के सौंदर्य पर सधे हुए होने के कारण सम्मोहक और प्रभावशाली होते हैं। हिंदी गीत कविता के शिखर पुरुष आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री का स्नेह सानिध्य इन्हें मिलता रहा। इन्होंने जानकीवल्लभ शास्त्री संचयिता  का कुशल संयोजन और संपादन किया है। मानवीय मूल्य, भारतीय संस्कृति और सघन संवेदना के कवि संजय पंकज एक कुशल वक्ता और सामाजिक सरोकार के भाव-वैभव से संपन्न व्यक्तित्व हैं।" प्रशस्ति पत्र का वाचन कविवर हीरालाल मिश्र मधुकर ने किया। समारोह में 'आधुनिक परिप्रेक्ष्य में हिंदी काव्य की दशा और दिशा' विषय पर बोलते हुए संजय पंकज ने कहा कि कविता कहते ही व्यापक सांस्कृतिक लोक में जो धारणा बनती है वह छंदोबद्ध है। तुलसी, कबीर, मैथिलीशरण गुप्त, पंत, प्रसाद, निराला, महादेवी, दिनकर, बच्चन, नीरज, जानकीवल्लभ शास्त्री जैसे कवियों के पाठक दूर से दूर गांव तक में फैले हुए हैं। विचार के नाम पर गद्य की तरह जिस तरह की कविताएं परोसी जाती हैं उससे लोगों का जुड़ाव नहीं हो पाता है। आज हिंदी कविता की दशा संतोषप्रद नहीं है उसे सही दिशा की ओर ले जाने के लिए गंभीरता से सोचने की जरूरत है। इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार हीरालाल मिश्र मधुकर के संपादन में नई सदी के स्वर, भाग 3 (1293 पृष्ठ, 325 कवि) विशाल समवेत काव्य संग्रह का लोकार्पण हुआ। आयोजन के दूसरे दिन श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार अंध विद्यालय दुर्गाकुंड वाराणसी के विराट कवि सम्मेलन में लोकप्रिय गीतकार डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र की उपस्थिति में संजय पंकज को 'हिंदी साहित्य श्री-सम्मान' से अंगवस्त्र, सम्मान पत्र और पुस्तकें देकर विभूषित किया गया।

विदित हो कि यवनिका उठने तक, मंजर मंजर आग लगी है, यहां तो सब बंजारे, मां है शब्दातीत, शब्द नहीं मां चेतना, सोच सकते हो, समय बोलता है, मौसम लेता अंगड़ाई, शब्दों के फूल खिले, बजे शून्य में अनहद बाजा - जैसी कृतियों के चर्चित रचनाकार संजय पंकज को राष्ट्रीय स्तर पर कई सम्मान और पुरस्कार प्राप्त हैं। सम्मानित होने पर डॉ. महेंद्र मधुकर, डॉ. इंदु सिन्हा, डॉ. रिपुसूदन श्रीवास्तव, डॉ. शारदाचरण, डॉ. रामप्रवेश सिंह, डॉ. रवींद्र उपाध्याय, डॉ. निर्मला सिंह, डॉ. पूनम सिन्हा, ब्रजभूषण मिश्र, कुमार विरल, विजय शंकर मिश्र, पुष्पा प्रसाद, वंदना विजय लक्ष्मी, विकास नारायण उपाध्याय, डॉ. वीरेंद्र किशोर, समाजसेवी एच एल गुप्ता, मधुमंगल ठाकुर, ब्रजभूषण शर्मा, डॉ. रामजी प्रसाद, डॉ. एच.एन. भारद्वाज, अविनाश तिरंगा उर्फ ऑक्सीजन बाबा, डॉ. यशवंत, सुधीर कुमार आदि ने प्रसन्नता व्यक्त की और डॉ. पंकज को बधाइयां दीं।