देव दीपावली का दिव्य उत्सव : धरती से वैकुंठ तक

  • Post By Admin on Nov 15 2024
देव दीपावली का दिव्य उत्सव : धरती से वैकुंठ तक

मुजफ्फरपुर : कार्तिक पूर्णिमा के शुभ अवसर पर भगवान नारायण और भगवान शिव का दिव्य संगम देखने को मिलता है। इस दिन को देव दीपावली के रूप में मनाया जाता है जिसे धरती से लेकर वैकुंठ तक दीपोत्सव के रूप में माना जाता है।

पौराणिक मान्यता के अनुसार, तुलसी विवाह के बाद भगवान नारायण देवताओं के साथ काशी विश्वनाथ मंदिर पहुंचे। गंगा घाट से लेकर विश्वनाथ मंदिर के प्रांगण तक दीप जलाए गए। भगवान नारायण ने ब्राह्मण रूप धारण कर तुलसी के साथ भगवान विश्वनाथ की विधिवत पूजा-अर्चना की। उन्होंने श्रृंगार, अर्चन और दीपमालाओं का भेंट कर भगवान शिव को प्रसन्न किया।

इस अवसर पर भगवान शिव ने प्रसन्न होकर आशीर्वाद दिया और कहा, "नमो ब्राह्मण देवाय, गोविंद हिताय च जगत हिताय। कृष्णाय गोविंदाय नमो नमः।" शिव ने यह भी कहा कि सभी मंत्र देवताओं से और देवता ब्राह्मणों से अधीन होते हैं, इसलिए ब्राह्मणों का स्थान देवताओं से भी ऊंचा है।

पंडित जय किशोर मिश्र ने इस अवसर पर बताया कि देव दीपावली का यह पर्व हरि (विष्णु) और हर (शिव) के दिव्य संगम का प्रतीक है। उन्होंने कहा, "यह दिन वैकुंठ और धरती के बीच दिव्यता का सेतु है। गंगा तट पर जलाए गए दीप केवल अंधकार का नाश ही नहीं करते बल्कि यह भक्तों के जीवन में प्रकाश और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करते हैं। देव दीपावली शिव और विष्णु की उपासना का अद्वितीय अवसर है जो हमारी आध्यात्मिक उन्नति में सहायक है।"

देव दीपावली: हरि और हर का मिलन

कार्तिक पूर्णिमा पर हरि और हर का संबंध गहरा प्रतीकात्मक है। यह दिन देवताओं की दीपावली के रूप में मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन वैकुंठ के द्वार धरती पर खुलते हैं और संपूर्ण सृष्टि में दिव्यता का संचार होता है। गंगा घाटों पर दीपों की अविरल धाराएं प्रवाहित होती हैं जो वैकुंठ और पृथ्वी के बीच की दूरी को मिटा देती हैं।

काशी: देव दीपावली का प्रमुख केंद्र

काशी में गंगा के घाटों पर हजारों दीप जलाकर देवताओं का स्वागत किया जाता है। इस दिन गंगा पूजन, दीपदान और शिव की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। श्रद्धालु मानते हैं कि इस दिन दीप जलाने और शिव-नारायण की आराधना करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

शिव की महिमा और स्तुति

इस दिन भगवान शिव को समर्पित अनेक स्तुतियां और मंत्रों का उच्चारण किया जाता है। शिव को सच्चिदानंद, सर्वशक्तिमान और त्रिनेत्रधारी के रूप में पूजा जाता है। शिव की महिमा वर्णन करते हुए उन्हें वेदों का स्त्रोत, सृष्टि का रचयिता और समस्त भूतों के स्वामी बताया गया है। उनकी आराधना से भक्तों को सभी दुःखों से मुक्ति और कल्याण की प्राप्ति होती है।

देव दीपावली का यह पर्व न केवल धार्मिक महत्व रखता है बल्कि यह हरि और हर के अद्वितीय मिलन का प्रतीक है। यह उत्सव धरती से वैकुंठ तक दिव्यता और आस्था का संदेश देता है जो हर भक्त के जीवन में शांति और समृद्धि का संचार करता है। पंडित जय किशोर मिश्र के अनुसार, "यह पर्व केवल एक परंपरा नहीं बल्कि मानवता के आध्यात्मिक उत्थान का माध्यम है।"