मोक्ष नगरी का अद्भुत कुंड, जहां भटकती आत्माओं को मिलती है मुक्ति, चुकाया जाता है ऋण
- Post By Admin on Aug 19 2025

वाराणसी : काशी को मोक्ष नगरी कहा जाता है, जहां हर जीव को मुक्ति का मार्ग मिलता है। इसी आस्था का केंद्र है पिशाच मोचन कुंड, जिसे पितृ दोष निवारण और अकाल मृत्यु प्राप्त आत्माओं की मुक्ति का अद्भुत तीर्थ माना जाता है। मान्यता है कि यहां किए गए तर्पण, पिंडदान और त्रिपिंडी श्राद्ध से भटकती आत्माओं को शांति और परिवार को पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है।
गरुड़ पुराण और स्कंद पुराण के काशी खंड में वर्णित इस तीर्थ का इतिहास गंगा के धरती पर आने से भी प्राचीन बताया जाता है। विमलोदक सरोवर के नाम से विख्यात यह कुंड समय के साथ पिशाच मोचन के रूप में प्रसिद्ध हुआ। कहा जाता है कि यहां एक पापी पिशाच को भी मोक्ष प्राप्त हुआ था।
23 अगस्त को पड़ने वाली कुशी अमावस्या, मघा नक्षत्र और परिघ योग इस तीर्थ पर विशेष महत्व रखते हैं। इस दिन हजारों श्रद्धालु काशी पहुंचकर अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए तर्पण व पिंडदान करते हैं। इसके अतिरिक्त पितृपक्ष और हर अमावस्या को यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है।
काशी के ज्योतिषाचार्य पं. रत्नेश त्रिपाठी बताते हैं कि त्रिपिंडी श्राद्ध में तीन पीढ़ियों के पूर्वजों का पिंडदान होता है। इसमें ब्रह्मा, विष्णु और शिव की प्रतिष्ठा कर अनुष्ठान किया जाता है। यह अनुष्ठान न केवल भटकती आत्माओं को शांति देता है, बल्कि परिवार में सुख-समृद्धि भी लाता है।
कुंड के पास स्थित प्राचीन पीपल वृक्ष भी विशेष आस्था का केंद्र है। मान्यता है कि प्रतीकात्मक रूप से आत्माओं को इसी वृक्ष पर बैठाया जाता है और सिक्का बांधकर उनका ऋण चुकाया जाता है। कुशी अमावस्या पर कुश उखाड़ने की परंपरा भी इसी से जुड़ी हुई है, जिसे तर्पण और पिंडदान में अनिवार्य माना जाता है।
पिशाच मोचन कुंड को काशी का विमल तीर्थ कहा गया है। मान्यता है कि यहां स्नान, दान और श्राद्ध करने से न केवल पितृ दोष का निवारण होता है, बल्कि आत्माओं को सद्गति और परिवार को शांति व समृद्धि प्राप्त होती है।