साहित्य और संस्कृति के साधक डॉ. संजय पंकज से डॉ. सुधांशु कुमार की खास बातचीत
- Post By Admin on Dec 04 2024

मुज़फ्फरपुर : समकालीन हिन्दी साहित्य में एक बड़ा नाम डॉ. संजय पंकज ने अपनी रचनात्मक यात्रा में साहित्य, समाज और संस्कृति को समर्पित किया है। पंजाब, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और बिहार जैसे राज्यों में विभिन्न साहित्यिक मंचों पर अपनी उपस्थिति दर्ज करवा चुके हैं। उन्होंने समकालीन हिंदी साहित्य को न सिर्फ सशक्त रचनाएं दीं, बल्कि समाज और संस्कृति के महत्व को भी जन-जन तक पहुँचाया।
डॉ. संजय पंकज का साहित्यिक योगदान उनके द्वारा लिखित कविताओं, गीतों और विचारों के रूप में सदैव याद रखा जाएगा। “माँ है शब्दातीत, शब्द नहीं माँ चेतना,” “मंजर मंजर आग लगी है,” जैसी कृतियों के रचनाकार डॉ. संजय पंकज ने साहित्य के माध्यम से सामाजिक, सांस्कृतिक और मानवतावादी संदेश दिए हैं।
हाल ही में उन्होंने श्रीराम इकबाल सिंह राकेश साहित्य परिषद द्वारा आयोजित कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। जो विश्व हिंदी दिवस और विवेकानंद जयंती के अवसर पर मसौढ़ी के प्राथमिक शिक्षक शिक्षा महाविद्यालय में आयोजित हुआ था। कार्यक्रम के दौरान डॉ. पंकज से डॉ. सुधांशु कुमार ने साहित्य, समाज और संस्कृति पर विस्तृत बातचीत की। इस संवाद के दौरान डॉ. पंकज ने समकालीन साहित्य और साहित्यकारों की चुनौतियों, समाज में साहित्य की भूमिका और नयी पीढ़ी के लेखकों के लिए अपने विचार रखे।
डॉ. संजय पंकज के अनुसार उनकी साहित्यिक यात्रा की प्रेरणा उनके घर के साहित्यिक वातावरण और माँ से मिली। उन्होंने बताया, “घर में साहित्यिक पुस्तकें थीं, माँ से रामचरित मानस पढ़ने की प्रेरणा मिली, और परिवार के लोगों का सहयोग मिला।” इसके साथ ही उन्होंने आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री का सान्निध्य प्राप्त करने को भी महत्वपूर्ण बताया। जो उनके साहित्यिक जीवन का एक अहम मोड़ था।
साहित्य के विकास और वर्तमान स्थिति पर विचार करते हुए डॉ. पंकज ने कहा कि पहले साहित्य को सेवा माना जाता था, लेकिन आजकल इसे व्यापार के रूप में लिया जा रहा है। उनका मानना है कि जब साहित्य का उद्देश्य जन जागरण और जन कल्याण की बजाय सिर्फ धन अर्जन बन जाता है, तो इससे साहित्य की गरिमा पर असर पड़ता है। उन्होंने रीतिकाव्य को इसका उदाहरण बताया। जिसमें कई कवि दरबारी संस्कृति के तहत सिर्फ राजाश्रय के लिए लिखते थे।
आज के साहित्य और साहित्यकारों के सामने दलगत भावना, वैचारिक पूर्वाग्रह और बाजारवाद जैसी कई चुनौतियाँ हैं। डॉ. पंकज का मानना है कि साहित्य और साहित्यकार को इन नकारात्मक प्रभावों से बचने की आवश्यकता है, ताकि वे अपनी रचनाओं में जनहित और जनकल्याण की भावना को सर्वोपरि रख सकें। उन्होंने महाकवि कबीर, सूर और तुलसी का उदाहरण देते हुए कहा कि इन साहित्यकारों का लक्ष्य केवल समाज और संस्कृति की रक्षा था, न कि किसी दल या विचारधारा का प्रचार करना।
डॉ. पंकज ने हिंदी साहित्य की व्यापकता के बारे में कहा, “हिंदी साहित्य को कभी भी पिछड़ा और कमजोर नहीं माना जाना चाहिए।” उन्होंने तुलसी, सूर, कबीर से लेकर प्रसाद, निराला और बच्चन तक के कवियों की कृतियों का उदाहरण देते हुए यह सिद्ध किया कि हिंदी साहित्य में हर युग में महत्वपूर्ण लेखन हुआ है जो किसी भी अन्य भाषा के साहित्य से कम नहीं है।
साहित्य का समाज में बदलाव लाने में अहम योगदान रहा है। डॉ. संजय पंकज ने कहा कि साहित्य हमेशा सामाजिक परिवर्तन और क्रांति का प्रेरक रहा है। चाहे वह फ्रांसीसी क्रांति हो या भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, साहित्य ने हर महत्वपूर्ण मोड़ पर लोगों की सोच को बदलने का काम किया है।
डॉ. संजय पंकज ने नई पीढ़ी के साहित्यकारों को साधना और स्वाध्याय के महत्व को समझाते हुए कहा, “जब तक हमारी कड़ी साधना नहीं होगी, तब तक हमारे लेखन से समाज एवं साहित्य का भला नहीं हो सकता।” उन्होंने युवा लेखकों को पूर्वजों की रचनाओं का गहन अध्ययन करने की सलाह दी और कहा कि यह उनकी रचनाओं को और सशक्त बना सकता है।
साहित्यिक यात्रा के साथ-साथ डॉ. संजय पंकज ने सिमुलतला की यात्रा को भी बेहद प्रभावशाली बताया। उन्होंने कहा कि यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत ने उन्हें गहरे प्रभावित किया है। “यहाँ के कण-कण में संवेदना और प्राकृतिक सौंदर्य का अमृत छलकता सा प्रतीत होता है,” उन्होंने कहा। साथ ही उन्होंने सिमुलतला आवासीय विद्यालय की प्रशंसा करते हुए यह भी कहा कि यह विद्यालय भविष्य में नालंदा विश्वविद्यालय की गरिमा को फिर से स्थापित करेगा।
साहित्य में खेमेबंदी के सवाल पर डॉ. संजय पंकज ने इसे साहित्यिक राजनीति और वैचारिक भटकाव का परिणाम बताया। उनका मानना था कि साहित्य का उद्देश्य केवल समाज और संस्कृति का उत्थान होना चाहिए, न कि किसी विशेष विचारधारा के प्रचार का।
यह संवाद न केवल साहित्य और समाज के मुद्दों पर था, बल्कि यह डा. संजय पंकज के गहरे चिंतन और उनके रचनात्मक दृष्टिकोण का भी परिचायक था। उनकी रचनाओं और विचारों का उद्देश्य हमेशा मानवता और समाज की भलाई रहा है और यही उनका साहित्यिक योगदान है।
डॉ. संजय पंकज की यह गहरी और विचारशील बातचीत हमें यह समझाती है कि साहित्य सिर्फ एक काव्यात्मक अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि समाज की नब्ज़ को पकड़ने का एक सशक्त माध्यम है।