स्वच्छता की क्रांति के अग्रदूत बिंदेश्वर पाठक : सुलभ शौचालय ने बदली भारत की तस्वीर
- Post By Admin on Aug 15 2025
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नई दिल्ली : सामाजिक सुधार और स्वच्छता के क्षेत्र में भारतीय समाजशास्त्री व उद्यमी डॉ. बिंदेश्वर पाठक ने एक ऐसा योगदान दिया, जिसने न केवल भारत बल्कि विश्व स्तर पर लाखों लोगों की जिंदगी बदल दी। सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक के रूप में उनकी सोच आज भी ‘स्वच्छ भारत’ के सपने को प्रेरित करती है।
बिंदेश्वर पाठक का जन्म 2 अप्रैल 1943 को बिहार के वैशाली जिले के रामपुर बघेल गांव में हुआ। पटना विश्वविद्यालय से समाजशास्त्र में पीएचडी करने वाले पाठक ने अपने शोध में सफाईकर्मियों की मुक्ति और कम लागत की सफाई प्रणाली पर ध्यान केंद्रित किया। इसी शोध ने उन्हें खुले में शौच और मैला ढोने की प्रथा को समाप्त करने के लिए प्रेरित किया।
साल 1970 में उन्होंने सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गनाइजेशन की स्थापना की। उनके द्वारा विकसित ट्विन-पिट पोर-फ्लश शौचालय मॉडल ने ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में स्वच्छता को किफायती और सुलभ बनाया। आज भारत में 10,000 से अधिक सुलभ शौचालय और 15 लाख से ज्यादा घरों में उनके मॉडल के तहत शौचालय बने हैं।
पाठक ने अपने नवाचारों में अपशिष्ट को बायोगैस और जैविक खाद में बदलने की तकनीक भी विकसित की, जिसे भारत और नेपाल, भूटान, अफगानिस्तान तथा दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में अपनाया गया। उन्होंने विशेष रूप से वंचित समुदायों और महिलाओं के लिए स्वच्छता सुविधाओं को प्राथमिकता दी, जिससे महिलाओं की सुरक्षा और गरिमा में सुधार हुआ।
उनके योगदान को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिनमें पद्म भूषण (1991), स्टॉकहोम वाटर पुरस्कार (2009), गांधी शांति पुरस्कार (2016) शामिल हैं। मरणोपरांत 2024 में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें पद्म विभूषण से नवाजा।
15 अगस्त 2023 को 80 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया, लेकिन डॉ. बिंदेश्वर पाठक की सामाजिक क्रांति और स्वच्छता के क्षेत्र में योगदान आज भी समाज में जीवित है और आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा।