पुण्यतिथि विशेष : बिहार की सियासत के करिश्माई चेहरे जगन्नाथ मिश्रा, उपलब्धियों और विवादों से भरा जीवन

  • Post By Admin on Aug 19 2025
पुण्यतिथि विशेष : बिहार की सियासत के करिश्माई चेहरे जगन्नाथ मिश्रा, उपलब्धियों और विवादों से भरा जीवन

नई दिल्ली : बिहार की राजनीति में पंडित जगन्नाथ मिश्रा का नाम एक ऐसे नेता के रूप में दर्ज है, जिन्होंने शिक्षक से लेकर मुख्यमंत्री तक का सफर तय कर राज्य की दिशा और दशा दोनों को प्रभावित किया। 24 जून 1937 को सुपौल जिले के बलुआ बाजार में जन्मे इस मिथिला के सपूत ने तीन बार बिहार की सत्ता संभाली और अपनी सादगी, जनसंपर्क और फैसलों से राजनीति में गहरी छाप छोड़ी।

जगन्नाथ मिश्रा की राजनीतिक यात्रा की शुरुआत 1960 में कांग्रेस से हुई थी। अर्थशास्त्र के प्रोफेसर से नेता बने मिश्रा को राजनीति में कदम रखने के लिए उनके बड़े भाई और तत्कालीन रेल मंत्री ललित नारायण मिश्रा ने प्रेरित किया था। 1975 में बम विस्फोट में भाई की हत्या ने उन्हें गहरा आघात दिया, लेकिन यही घटना उनकी राजनीति को और दृढ़ बना गई।

महज 38 वर्ष की उम्र में बिहार के सबसे युवा मुख्यमंत्री बने मिश्रा ने शिक्षा और ग्रामीण विकास को अपनी प्राथमिकता बनाया। उनके कार्यकाल में विश्वविद्यालय सुधार और सामाजिक योजनाओं ने उन्हें लोकप्रिय बनाया। मिथिलांचल की संस्कृति, कला और साहित्य को प्रोत्साहन देने में भी उन्होंने अहम भूमिका निभाई।

उनका सबसे ऐतिहासिक और विवादित कदम था—बिहार में उर्दू को दूसरी राजभाषा का दर्जा देना। इस फैसले ने अल्पसंख्यक समुदाय का दिल जीता लेकिन मैथिली भाषियों और विपक्षी दलों ने इसका कड़ा विरोध किया। उन्हें ‘वोट बैंक राजनीति’ और ‘तुष्टिकरण’ के आरोप झेलने पड़े।

जगन्नाथ मिश्रा का राजनीतिक सफर विवादों से भी अछूता नहीं रहा। 1990 के दशक के बहुचर्चित चारा घोटाले में उनका नाम जुड़ा और 2013 में उन्हें दोषी ठहराया गया। हालांकि उन्होंने हमेशा इसे राजनीतिक साजिश बताया और अपनी बेगुनाही का दावा किया।

19 अगस्त 2019 को लंबी बीमारी से दिल्ली में उनका निधन हो गया। उनके पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार पैतृक गांव बलुआ, सुपौल में राजकीय सम्मान के साथ हुआ। बिहार सरकार ने उनके निधन पर तीन दिन का राजकीय शोक घोषित किया था।