खेती पर संकट के बादल : लखीसराय में रोग, बाढ़ और आवारा पशुओं से त्रस्त किसान

  • Post By Admin on Dec 13 2025
खेती पर संकट के बादल : लखीसराय में रोग, बाढ़ और आवारा पशुओं से त्रस्त किसान

लखीसराय : जिले के किसानों की मुश्किलें थमने का नाम नहीं ले रही हैं। खेतों में खड़ी फसलें जहां रोगों की चपेट में हैं, वहीं आवारा पशुओं और बार-बार आई बाढ़ ने किसानों की कमर तोड़ दी है। समय पर सही दवा का छिड़काव नहीं हो पाने से किसानों की महीनों की मेहनत पर पानी फिर रहा है। कर्ज लेकर की गई खेती चौपट होने से किसानों के चेहरे पर चिंता की गहरी लकीरें साफ देखी जा सकती हैं।

किसानों का कहना है कि फसल में रोग लगते ही वे मजबूरी में दुकानदारों की सलाह पर दवा छिड़कते हैं, लेकिन न तो रोग ठीक होता है और न ही नुकसान की भरपाई। कई बार नकली या अनुपयुक्त दवाओं पर पैसा खर्च हो जाता है, जिससे स्थिति और बदतर हो जाती है। एक किसान ने पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा कि व्यापारी मुनाफा कमा रहे हैं, जबकि किसान अपनी व्यथा लेकर दर-दर भटकने को मजबूर हैं।

विशेषज्ञ सलाह के अभाव में बढ़ रहा नुकसान
किसानों ने कृषि विभाग से मांग की है कि खेतों में ‘ऑन स्पॉट खेती के डॉक्टर’ या कृषि वैज्ञानिकों की तैनाती की जाए, ताकि फसल रोगों की समय पर पहचान और सही उपचार संभव हो सके। उदाहरण के तौर पर धान की फसल में ब्लास्ट रोग या गेहूं में रस्ट रोग जैसी समस्याओं के लिए सिफारिशी दवाओं का समय पर छिड़काव बेहद जरूरी है, लेकिन विशेषज्ञ मार्गदर्शन के बिना किसान गलत फैसले लेने को मजबूर हो रहे हैं।

आवारा पशु और बाढ़ ने बढ़ाई परेशानी
रोगों के साथ-साथ आवारा नीलगाय और सांड फसलों को भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं। वहीं इस मानसून में तीन बार आई बाढ़ ने खेतों को पूरी तरह तबाह कर दिया। बावजूद इसके, आजीविका के लिए किसान कर्ज लेकर फिर से खेती करने को विवश हैं। एक बुजुर्ग किसान ने कहा, “खेती से मन उचट गया है, लेकिन पेट पालने का और कोई साधन भी नहीं है।”

सरकार से त्वरित हस्तक्षेप की मांग
किसान संगठनों ने सरकार से अपील की है कि कृषि वैज्ञानिकों की मोबाइल टीम बनाकर गांव-गांव भेजी जाए, साथ ही कृषि दवा दुकानों पर नकली दवाओं की सख्त जांच हो। जिला कृषि अधिकारी ने बताया कि जागरूकता शिविर चलाए जा रहे हैं और भविष्य में और अधिक विशेषज्ञों की व्यवस्था करने का प्रयास किया जाएगा।

किसानों का कहना है कि यदि समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो खेती का आधार और अधिक कमजोर हो जाएगा और किसान कर्ज के दलदल में और गहराते चले जाएंगे।