तुलसी विवाह की परंपरा, देवताओं और औषधि के रूप में उसकी महिमा
- Post By Admin on Nov 13 2024
मुजफ्फरपुर : तुलसी भारतीय संस्कृति का एक अति पवित्र और औषधीय पौधा है, जिसे सनातन परंपरा में विष्णु प्रिया कहा जाता है। विशेष रूप से कार्तिक माह में तुलसी की महिमा और गरिमा का वर्णन विभिन्न पुराणों में किया गया है, जैसे कि पद्म पुराण, स्कंद पुराण और शिव पुराण। तुलसी के बीज और मंजरी के गुण न केवल देवताओं के लिए, बल्कि औषधि के रूप में भी अत्यधिक उपयोगी माने जाते हैं।
तुलसी की धार्मिक और ऐतिहासिक महिमा का वर्णन करते हुए पं. जय किशोर मिश्र ने बताया कि तुलसी का पूर्व जन्म में कालनेमि की दिव्यसुंदरी कन्या वृन्दा के रूप में हुआ था, जो शिव, विष्णु और ब्रह्मा से दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करती थीं। वह पांच देवियों में से सर्वाधिक उच्च स्थान पर विराजमान थीं। समुद्र कुमार जलंधर ने उसे पत्नी के रूप में प्राप्त किया। वृन्दा एक अत्यंत पतिव्रता महिला थीं। लेकिन, जलंधर के परम गुरु शुक्राचार्य के मार्गदर्शन से जलंधर देवताओं से शत्रुता करने लगा। इसके परिणामस्वरूप, महादेव और भवानी के आदेश पर भगवान विष्णु ने वृन्दा का शरीर स्पर्श किया, जिससे जलंधर का जीवन समाप्त हो गया और वह भस्मीभूत हो गया। इसके बाद, वृन्दा का रूप तीन पौधों में परिवर्तित हुआ बेल, तुलसी और धात्री। इन पौधों का विवाह भगवान विष्णु के साथ संपन्न हुआ और तब से तुलसी विवाह की परंपरा शुरू हुई।
यह परंपरा कार्तिक माह के द्वादशी से लेकर पूर्णिमा तक मनाई जाती है। इस दिन विशेष रूप से तुलसी का विवाह शालिग्राम शिला से किया जाता है। इस दौरान मंगलवार, शनिवार और रविवार का त्याग किया जाता है। श्रद्धालु इस दिन तुलसी के पौधे की पूजा करते हैं ताकि उनके जीवन में सुख, समृद्धि और स्वास्थ्य की प्राप्ति हो।
पं. जय किशोर मिश्र के अनुसार, तुलसी विवाह की परंपरा न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमारे जीवन में सकारात्मकता और आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर करने वाली है। तुलसी का पौधा हमारे घरों में औषधि के रूप में उपयोगी होने के साथ-साथ हमारे जीवन में शांति और समृद्धि लाने का भी कार्य करता है।