पितृपक्ष विशेष : गयाजी में पिंडदान की पवित्र परंपरा, माता सीता के श्राप से जुड़ी है अनूठी मान्यता

  • Post By Admin on Sep 08 2025
पितृपक्ष विशेष : गयाजी में पिंडदान की पवित्र परंपरा, माता सीता के श्राप से जुड़ी है अनूठी मान्यता

गयाजी : पितृपक्ष का समय गयाजी में श्रद्धा और आस्था के महापर्व की तरह मनाया जाता है। फल्गु नदी के तट पर बसा यह नगर मोक्षस्थली कहलाता है, जहां हर वर्ष लाखों श्रद्धालु पिंडदान कर अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं। मान्यता है कि यहां किया गया पिंडदान 108 कुल और सात पीढ़ियों को मोक्ष दिलाता है।

गयाजी का महत्व वायु पुराण, गरुड़ पुराण और विष्णु पुराण में भी उल्लेखित है। महाभारत काल में पांडवों ने और त्रेतायुग में भगवान श्रीराम व माता सीता ने यहां अपने पूर्वजों का श्राद्ध कर्म संपन्न किया था।

गयासुर की कथा और मोक्षस्थली की उत्पत्ति

लोककथा के अनुसार गयासुर नामक असुर की तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने उसे वरदान दिया कि उसके दर्शन से लोग पापमुक्त होंगे। इससे देवताओं में चिंता फैल गई और भगवान विष्णु ने गयासुर से यज्ञ के लिए उसका शरीर मांगा। यज्ञ पूर्ण होने के बाद विष्णु ने उसे मोक्ष देकर आशीर्वाद दिया कि उसका शरीर जहां-जहां फैलेगा, वह स्थान पवित्र होगा। वर्तमान गया नगरी उसी कथा से जुड़ी मानी जाती है।

माता सीता का पिंडदान और श्राप

रामायण प्रसंग के अनुसार, पिता दशरथ के देहांत के बाद श्रीराम, लक्ष्मण और माता सीता पितृपक्ष के दौरान गया आए। श्राद्ध सामग्री लाने गए राम-लक्ष्मण की अनुपस्थिति में दशरथ की आत्मा सीता जी के सामने प्रकट हुई और पिंडदान की प्रार्थना की। माता सीता ने रेत से पिंड बनाकर श्राद्ध संपन्न किया और फल्गु नदी, गाय, केतकी पुष्प व वटवृक्ष को साक्षी बनाया।

जब राम लौटे तो गवाहों में से केवल वटवृक्ष ने सत्य कहा। फल्गु नदी, गाय और केतकी पुष्प ने झूठ बोला। इससे क्रोधित होकर सीता जी ने फल्गु नदी को जलहीन होने, गाय को जूठन खाने और केतकी पुष्प को पूजा से वंचित होने का श्राप दिया। वहीं सत्य बोलने वाले वटवृक्ष को दीर्घायु का आशीर्वाद दिया। आज भी यह मान्यता जीवित है—फल्गु नदी सूखी रहती है, पिंडदान बालू से किया जाता है, गाय पूजनीय होकर भी जूठन खाती है और केतकी पुष्प पूजा में नहीं चढ़ाया जाता।

पितृपक्ष मेला और बोधगया का महत्व

हर साल पितृपक्ष में गया में विशाल मेला लगता है, जिसमें देश-विदेश से श्रद्धालु पहुंचते हैं। पिंडदान के इस महाकुंभ का धार्मिक ही नहीं, सांस्कृतिक महत्व भी है। पास स्थित बोधगया में भगवान बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त किया था, जिससे यह भूमि हिंदू और बौद्ध दोनों धर्मावलंबियों के लिए समान रूप से पूज्यनीय मानी जाती है।