झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का निधन, हेमंत सोरेन बोले – आज मैं शून्य हो गया हूं
- Post By Admin on Aug 04 2025

रांची: झारखंड की राजनीति के पुरोधा, दिशोम गुरु शिबू सोरेन का सोमवार सुबह दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में निधन हो गया। वे लंबे समय से बीमार चल रहे थे और वेंटिलेटर सपोर्ट पर थे। किडनी संबंधी गंभीर समस्याओं और हालिया ब्रेन स्ट्रोक के बाद उनकी हालत चिंताजनक बनी हुई थी। अस्पताल के मुताबिक, उन्होंने सुबह 8:56 बजे अंतिम सांस ली।
शिबू सोरेन के निधन की खबर से झारखंड सहित पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई है। झारखंड की राजनीति का एक युग समाप्त हो गया। आदिवासी अधिकारों की लड़ाई के प्रतीक रहे 'दिशोम गुरु' के निधन पर राजनीतिक-सामाजिक जगत ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।
मुख्यमंत्री और उनके पुत्र हेमंत सोरेन ने सोशल मीडिया पर एक भावुक पोस्ट में लिखा, "आदरणीय दिशोम गुरुजी हम सभी को छोड़कर चले गए हैं। आज मैं शून्य हो गया हूं..."
यह बयान न केवल एक पुत्र के दुख को दर्शाता है, बल्कि झारखंड की राजनीति में उनकी अनुपस्थिति की भारी खालीपन को भी बयां करता है।
आदिवासी चेतना के प्रणेता
11 जनवरी 1944 को बिहार के हजारीबाग में जन्मे शिबू सोरेन ने बचपन से ही आदिवासियों के शोषण और अन्याय के खिलाफ संघर्ष शुरू किया। झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक के रूप में उन्होंने अलग राज्य झारखंड के निर्माण में निर्णायक भूमिका निभाई।
उन्होंने न सिर्फ आदिवासियों के अधिकार की आवाज बुलंद की, बल्कि सामाजिक न्याय, शिक्षा, और सांस्कृतिक पहचान के लिए भी सतत संघर्ष किया। उन्हें झारखंड के आम जनमानस में "दिशोम गुरु" और "गुरुजी" के नाम से गहरी श्रद्धा मिलती रही।
तीन बार बने मुख्यमंत्री, केंद्र में भी निभाई जिम्मेदारी
शिबू सोरेन वर्ष 2005, 2008 और 2009 में झारखंड के मुख्यमंत्री रहे, हालांकि राजनीतिक अस्थिरता के चलते वे एक बार भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके। इसके अलावा, उन्होंने केंद्र में कोयला मंत्री के रूप में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई की तैयारी
राज्य सरकार ने शिबू सोरेन को राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई देने की घोषणा की है। झारखंड के विभिन्न जिलों में झामुमो कार्यकर्ताओं और समर्थकों ने उनके निधन पर शोक सभाएं आयोजित की हैं। राज्य में दो दिन का शोक घोषित किए जाने की संभावना है।
शिबू सोरेन के निधन से सिर्फ एक नेता ही नहीं, बल्कि एक विचारधारा, एक आंदोलन और एक युग का अंत हो गया है। उनके योगदान को आने वाली पीढ़ियां लंबे समय तक याद करेंगी।