भगवान कृष्ण ने दिया गणतंत्र, हमने उसमें जन्म लिया: नीतीश भारद्वाज

  • Post By Admin on Dec 29 2022
भगवान कृष्ण ने दिया गणतंत्र, हमने उसमें जन्म लिया: नीतीश भारद्वाज

जयपुर : हम सौभाग्यशाली है की हम गणतंत्र में है। यह हमे बोलने की आजादी देता है। यह गणतंत्र व्यवस्था भगवान श्री कृष्ण ने दी है। गणतंत्र व्यवस्था ही हमें अपने मन में चलने वाले विचारों को व्यक्त करने का अधिकार देती है। यह विचार बुधवार को मालवीय नगर स्थित पाथेय भवन के महर्षि नारद सभागार में संस्कार भारती की ओर से आयोजित कला संवाद  में संस्कार भारती के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नीतीश भारद्वाज ने मुख्य वक्ता के रूप में यह विचार व्यक्त किए।  नीतीश भारद्वाज ने बीआर चोपड़ा की महाभारत में भगवान श्री कृष्ण का अभिनय निभाया था। नीतीश भारद्वाज दो बार लोकसभा के सदस्य के रूप में भी चुने गए थे। कलासाधकों के साथ प्रत्यक्ष संवाद में इसके साथ ही भारद्वाज ने कहा कि हम कलाकार सृजन करने की शक्ति लेकर पैदा होते हैं। कला और साहित्य हर संस्कृति का ऐसा रंग होता है जो उसको पहचान देता है। वो अन्य संस्कृति को भी पहचान देता है। हमने एक पुरानी संस्कृति में जन्म लिया, जो आज भी जीवित हैं। भगवान राम ने मृयादाओं की स्थापना की। वहीं श्री कृष्ण ने मृयादाओं को नहीं माना। श्री कृष्ण ने कहा मैं ही मृयादाओ का निर्माण करूंगा।
उन्होंने आगे कहा कि हमारा जो वसुधैव कुटुंब का जो ध्येय है वो पूरे विश्व के लिए है। उन्होंने कहा लोकडाउन ने महाभारत देखने का अवसर दिया। लोकडाउन में अधिकतर ने महाभारत दूसरी बार देखी लेकिन मैने पहली बार देखी। इससे पहले महाभारत देखने का अवसर ही नहीं मिला। महाभारत देखने पर मैने कुछ कमियां भी इसमे देख पाया, जिसमें आगे सुधार किया जा सकता है। इस दौरान नीतीश भारद्वाज से कला साधकों ने सवाल किए, जिनका उन्होंने जबाव भी दिया।  


जातीगण समीकरणों में अटकी राजनीति


राजनीतिक व्यवस्था और उसमें सुधार पर किए गए एक सवाल के जबाव में भारद्वाज ने कहा कि आज भी राजनीति जातिगत समीकरणों में अटकी हुई है। भगवान श्री कृष्ण ने कहा है मैं हर युग में आऊंगा। उन्होंने कहा श्री कृष्ण हमे गणतंत्र व्यवस्था और वोट का अधिकार देकर गए हैं। लेकिन कृष्ण का आना जरूरी है क्या? इसका उपाय भागवत गीता के सहारे भी किया जा सकता है। उन्होंने कहा जब तक हम एकत्र नहीं होंगे तब तक राजनेताओं को दोष देने से कुछ नहीं होगा। भारद्वाज ने जातीगत व्यवस्था पर आगे बोलते हुए कहा सुद्र वह है जो सबकी सेवा करे। सुद्र शब्द कभी किसी को नीचा दिखाने के लिए नहीं है।


हिंदी फिल्म हुई विवश


भारद्वाज ने इस दौरान वॉलीबुड इंडस्ट्री पर भी तंज कसा। उन्होंने कहा हिंदी फिल्म इंडस्ट्री आज विवश हो गई है अच्छी स्क्रिप्ट को लिखने व दिखाने के लिए। आज श्रोता और जनता ही तय करती है कि उसे क्या देखना है कैसे देखना है।  श्रोताओं को खुद की मर्जी से कुछ कंटेंट नहीं दिखाया जा सकता है। उन्होंने कहा समय-समय पर अलग-अलग विषयों पर फिल्में बनी है। एक दौर में कुछ कॉमेडी से संबंधित फिल्मों पर काम हुआ और कुछ अच्छी फिल्में बनी और वे चली भी। इसी तरह युद्ध, आजादी से संंबंधित फिल्मों पर भी काम हुआ।।


बच्चे हो रहे सोशल कॉन्टेक्ट से दूर


एक सवाल के जबाव में भारद्वाज ने कहा जिसकी आवश्यकता नहीं हो वो बच्चों को नहीं दे, जैसे मोबाइल। उन्होंने कहा आज बच्चे मोबाइल में अंतर्मुखी हो रहे हैं और सोशल कॉन्टेक्ट से दूर। उन्होंने कहा आजकल पढऩे का काम कम हो गया है। उन्होंने कहा बच्चों को रेडिमेट चीजे दिखाकर कमजोर किया जा रहा है। भारद्वाज ने उदाहरण देते हुए कहा कि एक बार बच्चों को महाभारत और रामायण पढऩे को दे फिर उसके बाद उन्हें यह दिखाए। माता-पिता के डाटने पर पूछे गए एक सवाल पर उन्होंने कहा माता-पिता जब तक डांटने के लिए है तब तक उसे एंजॉय करे। माता-पिता के डांटने के पीछे प्रेम होता है। उनका यह प्रयास होता है की मेरा बेटा कुछ अच्छा करे।


तलवार बाजी कला हो सकती हैं, लेकिन गला काटना नहीं: गोपाल शर्मा


कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए गोपाल शर्मा ने कहा कि ज्ञान, मन और कर्म मिलकर कला बनाती हैं। उन्होंने कहा क्या संगीत, नाटक, नृत्य ही कला है? बाल काटना, मालिस करना भी कला है। शर्मा ने कहा हर वर्ग का व्यक्ति कलाकार हैं। उन्होंने आगे कहा कि तलवार बाजी कला हो सकती हैं, लेकिन गला काटना कला नहीं हो सकती। उन्होंने कहा कला को गलत संदर्भ में भी प्रयोग किया जा रहा है। आज नेता या व्यक्ति पर आरोप लगाने के लिए कह देते हैं कि यह कलाकारी कर रहा है। यह सही नहीं है। शर्मा ने इस दौरान कहा कि भारतियों में लाखों साल पहले भी अलग-अलग कला थी। उन्होंने कहा हरियाणा की एक गुफा में एक लाख साल पुराने चित्र मिले हैं। इससे पता चलता है कि विश्व में कही हो या नहीं लेकिन भारत में एक लाख साल पहले भी चित्रकला मौजूद थी।
कार्यक्रम की अध्यक्षता मधु भट्ट तैलंग ने की। संयोजक बनवारीलाल चेजारा थे। आभार आत्माराम सिंहल ने किया। मंच संचालन निधीश गोयल ने किया। सुरेश बबलानी, रविन्द्र भारती, रामस्वरूप अग्रवाल, निम्बाराम  उपस्थित थे।