10 साल पुराने पॉक्सो मामले में आरोपी को कोर्ट से मिली बाईज्जत रिहाई

  • Post By Admin on Jun 13 2025
10 साल पुराने पॉक्सो मामले में आरोपी को कोर्ट से मिली बाईज्जत रिहाई

मुजफ्फरपुर: पॉक्सो विशेष न्यायालय-प्रथम ने एक दशक पुराने मामले में इंसाफ का परचम लहराते हुए आरोपी केशव राय को सभी आरोपों से बाईज्जत बरी कर दिया। यह फैसला न केवल न्याय की जीत है बल्कि मानवता की एक मिसाल भी है, जिसे मानवाधिकार अधिवक्ता एस.के. झा ने स्थापित किया है। उन्होंने आरोपी केशव राय की ओर से निःशुल्क मुकदमा लड़ते हुए यह सिद्ध कर दिया कि यदि पक्षकार निर्दोष हो और पैरवी सच्ची हो, तो सत्य की विजय निश्चित होती है।

यह मामला वर्ष 2015 का है, जब काजी मोहम्मदपुर थाना क्षेत्र के चंद्रलोक चौक स्थित रेलवे कॉलोनी में एक नाबालिग बच्ची के साथ कथित रूप से छेड़छाड़ की कोशिश की गई थी। घटना के बाद टैंकर चालक को मौके से पकड़ लिया गया, लेकिन साथ ही चालक के सहायक यानी खलासी केशव राय को भी इस मामले में सह-अभियुक्त बना दिया गया। एफआईआर संख्या 95/15 के तहत मामला दर्ज हुआ और केशव राय को भी जेल भेजा गया।

केशव राय बेगूसराय के बछवाड़ा थाना अंतर्गत राजापुर गांव का निवासी है और अत्यंत निर्धन परिवार से आता है। कानूनी लड़ाई लड़ने में पूरी तरह अक्षम इस युवक ने जब मानवाधिकार अधिवक्ता एस.के. झा से संपर्क किया, तो अधिवक्ता ने बिना किसी फीस के उसकी पैरवी करने का फैसला लिया। मामले की सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष ने चार गवाह प्रस्तुत किए, लेकिन अधिवक्ता झा ने बारीकी से तथ्यों का विश्लेषण करते हुए न्यायालय को बताया कि आरोपी केशव राय के खिलाफ कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं है और न ही वह मुख्य आरोपी था। उनकी प्रभावशाली बहस के आधार पर विशेष कोर्ट ने केशव को सभी आरोपों से मुक्त कर दिया।अधिवक्ता एस.के. झा ने फैसले के बाद कहा, "सत्य परेशान हो सकता है, लेकिन पराजित नहीं। हमारी न्यायिक संघर्ष यात्रा समाज के सबसे कमजोर तबके को न्याय दिलाने के लिए निरंतर जारी रहेगी।" उन्होंने बताया कि आरोपी इतना गरीब था कि उसके परिजन तक कोर्ट नहीं आ पाते थे, ऐसे में उन्होंने पूरी निष्ठा और संवेदनशीलता से इस केस को देखा।

इस फैसले के बाद जिले में मानवाधिकार संरक्षण और न्यायिक ईमानदारी को लेकर अधिवक्ता झा की सराहना की जा रही है। यह मामला उन सैकड़ों मामलों के लिए मिसाल है, जहां आरोपी केवल संदेह के आधार पर वर्षों तक न्याय का इंतजार करते हैं। यह रिहाई केवल एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि उस व्यवस्था की जीत है जो न्याय के मूल सिद्धांत "दोषी को सज़ा और निर्दोष को मुक्ति" को सर्वोपरि मानती है।