विविध समाचार

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Gmail पर अपनी फाइल्स को नहीं कर पा रहे हैं स्टोर, तुरंत इन तरीकों को अपनाएं
  • Post by Admin on Mar 26 2018

सुदामा न्यूज़ : आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में मोबाइल फोन हर इंसान की जरूरत बन चुकी है। अपने रोज़मर्रा की जरूरत की कागजातों को लोग फोन में ही सेव करके रखते हैं ताकि उन्हें जब उसकी जरूरत हो वो इस्तेमाल कर सके। लेकिन हमारे फोन की संग्रहण क्षमता तो सीमित होती है। Gmail अपने उपभोक्ताओं को 15 जीबी की स्टोरेज फ्री देती है। इसके बाद की स्टोरेज आपको खरीदनी पड़ती है। लेकिन अगर आप स्टोरेज खरीदना न   read more

क्रांतिकारियों को आतंकी कहना विदेशी साजिश : डा. सुधांशु कुमार
  • Post by Admin on Mar 23 2018

भारत के सबसे बड़े क्रांतिकारी थे शहीदेआजम भगत सिंह, जिन्होंने शोषणमुक्त समरस भारत की कल्पना की थी । उनका सपना आज भी अधूरा है ।भारत की स्वतंत्रता में उनका योगदान किसी से कम नहीं । भगत सिंह , राजगुरु , सुखदेव और चन्द्रशेखर आजाद आजादी के सबसे बड़े योद्धाओं में से थे । कुछ इतिहासकारों ने कुत्सित योजनांतर्गत भगत सिंह , चंद्रशेखर आजाद जैसे शहीदों को आतंकवादी कहकर उनका अपमान किया है । विडं   read more

परिधि से बाहर 2 : रजनीश
  • Post by Admin on Mar 18 2018

निःशब्दता की रात में, वायु की सन-सन गति निस्तब्ध, एकांत और सन्नत मन की नीरवता विबुधापगा में लीन, किसी अनजान दीप्ती-प्रभा की खोज में लोकायत को चुनौती देती है | रात सचमुच एक रहस्य लगती है |   read more

परिधि से बाहर कविता : डॉ. संजय पंकज
  • Post by Admin on Mar 18 2018

लो फिर तना कुहरा घना ! हादसों का फिर सिलसिला किससे करें शिकवा गिला गूफ्तगू में राजा यहाँ फिर प्रजा पर पहरा बना । डूबते को डूब जाना उस पर मना कुनमुनाना तिमिर से क्यों रौशनी का खौफ इतना गहरा छना । यह समय का चक्र ऐसा राज रथ है बक्र कैसा केसरी तन सिमटा हुआ मेमनों सा दुहरा बना ।   read more

राष्ट्रकवि दिनकर जी की अविस्मरणीय रचना
  • Post by Admin on Mar 18 2018

ये धुंध कुहासा छंटने दो           रातों का राज्य सिमटने दो प्रकृति का रूप निखरने दो           फागुन का रंग बिखरने दो, प्रकृति दुल्हन का रूप धर            जब स्नेह – सुधा बरसायेगी शस्य – श्यामला धरती माता            घर -घर खुशहाली लायेगी, तब चैत्र-शुक्ल की प्रथम तिथि            नव वर्ष मनाया जायेगा आर्यावर्त की पुण्य भूम   read more

परिधि से बाहर : डॉ. संजय पंकज
  • Post by Admin on Mar 18 2018

नदी का सतत प्रवाह कलकल छलछल करती उछलती मचलती लहरें जिसे चूमने उतरती हैं सूरज की बेटियाँ बहनों के संग आ जाती हैं नृत्य करती हवाएं सर्दी के दिनों में नदी की कोख में जा समाती है आग और इन सबको अपनी छाती में संभाले पृथ्वी कभी इतराती नहीं और अपनी नित्य सखी प्रकृति से गलबहियाँ करती पर्वत से सागर तक नदी को बहने देती है अनवरत प   read more

परिधि से बाहर : रजनीश
  • Post by Admin on Mar 18 2018

सड़क के किनारे खुले आकाश के नीचे सिसकता है एक नागफनी ! रोज मातम मनाता है और एक दिन सिर उठाकर पूछता है आकाश से कि मैंने कौन – सा ऐसा पाप किया जो मुझे निकाल दिया गया फूलों के बाग से | क्या मेरे काँटे चुभते है सबके दिल में ? अरे | अगर काँटे ही मेरे निर्वासन का कारण है तो निकाल दो उस गुलाब को भी फूलों के बाग से | @रजनीश   read more