मानसून की देरी से बिहार के विभिन्न हिस्सों में कृषि क्षेत्र को संकट

  • Post By Admin on Jul 05 2024
मानसून की देरी से बिहार के विभिन्न हिस्सों में कृषि क्षेत्र को संकट

बिहार के किसानों के लिए इस बार का मानसून इंतजार की परीक्षा बनकर आया है। मानसून की देरी ने राज्य के विभिन्न हिस्सों में कृषि क्षेत्र को संकट में डाल दिया है। मई और जून में सामान्यत: राज्य में अच्छी बारिश होती है, जिससे खरीफ फसलों की बुवाई समय पर हो जाती है। परंतु इस वर्ष मानसून की देरी ने किसानों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है।

बिहार के कृषि प्रधान राज्य होने के नाते यहां की अर्थव्यवस्था काफी हद तक खेती पर निर्भर करती है। धान, मक्का, दलहन, और अन्य खरीफ फसलों की बुवाई मानसून की बारिश पर निर्भर होती है। इस बार मानसून के न आने से खेत सूखे पड़े हैं, और किसान पानी के लिए आसमान की तरफ टकटकी लगाए बैठे हैं।

धान की खेती विशेषकर मानसून पर निर्भर करती है। सुखाड़ के कारण धान की रोपाई समय पर नहीं हो पाई, जिससे पैदावार प्रभावित होने की आशंका है। किसानों ने सिंचाई के लिए निजी ट्यूबवेल और अन्य स्रोतों का सहारा लिया, जिससे उनकी उत्पादन लागत बढ़ गई है। महंगे डीजल और बिजली के कारण अतिरिक्त खर्च ने किसानों की आर्थिक हालत और कमजोर कर दी है।

सुखाड़ की स्थिति ने न केवल किसानों की खेती को प्रभावित किया है, बल्कि उनके सामाजिक और आर्थिक जीवन को भी गहरे संकट में डाल दिया है। कई किसान कर्ज में डूबे हैं और कर्ज चुकाने की स्थिति में नहीं हैं। बारिश की कमी के कारण फसल की बुवाई में देरी होने से किसानों की आय में भी कमी आई है, जिससे उनके परिवारों का भरण-पोषण कठिन हो गया है।

बिहार सरकार ने सुखाड़ की स्थिति को देखते हुए कुछ राहत उपायों की घोषणा की है। मुख्यमंत्री ने किसानों के लिए राहत पैकेज देने का आश्वासन दिया है। सिंचाई के लिए अतिरिक्त पंप सेट और ट्यूबवेल की सुविधा मुहैया कराने के निर्देश दिए गए हैं। इसके अलावा, किसानों को कृषि इनपुट्स, जैसे बीज और उर्वरक, पर सब्सिडी देने का भी निर्णय लिया गया है।

सरकार ने प्रभावित क्षेत्रों में जल संचयन परियोजनाओं को तेज करने का निर्देश दिया है, ताकि भविष्य में जल संकट से निपटा जा सके। बावजूद इसके, किसानों का कहना है कि वास्तविक राहत पाने के लिए इन उपायों का तेजी से और प्रभावी तरीके से क्रियान्वयन जरूरी है।

मौसम विशेषज्ञों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन का असर मानसून पर भी पड़ रहा है। मानसून का पैटर्न बदल रहा है, जिससे बारिश की अनिश्चितता बढ़ गई है। विशेषज्ञों के अनुसार, किसानों को पारंपरिक खेती के साथ-साथ सूखे के प्रतिरोधी फसलों और जल प्रबंधन के आधुनिक तरीकों को अपनाने की जरूरत है। इससे उन्हें भविष्य में मानसून की अनिश्चितताओं से निपटने में मदद मिल सकती है।

आगे बढ़ते हुए, किसानों को भी अपनी रणनीतियों में बदलाव लाना होगा। सूखा प्रतिरोधी फसलों की ओर रुख, जल संरक्षण तकनीकों का उपयोग, और सरकारी योजनाओं का लाभ उठाना आवश्यक हो गया है।

कृषि वैज्ञानिकों और राज्य सरकार को मिलकर ऐसी योजनाएं विकसित करनी चाहिए जो किसानों को कम पानी में अधिक उत्पादन करने में मदद कर सकें। इसके साथ ही, कृषि क्षेत्र में निवेश बढ़ाकर, तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान कर इस संकट को अवसर में बदलने की जरूरत है।

बिहार में मानसून की देरी ने कृषि क्षेत्र में बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है। किसान इस संकट से जूझ रहे हैं और उन्हें तत्काल सहायता की आवश्यकता है। सरकार और समाज को मिलकर किसानों के लिए कारगर समाधान निकालना होगा ताकि वे इस मुश्किल घड़ी से उबर सकें और भविष्य में ऐसे संकटों का सामना करने के लिए बेहतर तरीके से तैयार हो सकें।