कठपुतली एक समृद्ध और विविध इतिहास वाली कला : सुनील सरला

  • Post By Admin on Jul 25 2024
कठपुतली एक समृद्ध और विविध इतिहास वाली कला : सुनील सरला

मुजफ्फरपुर: गुरुवार को बिहार बाल भवन (किलकारी) जिला स्कूल छात्रावास में कठपुतली कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसमें प्रसिद्ध कठपुतली कलाकार सुनील सरला के निर्देशन में बच्चों को इस विलुप्त होती लोककला का प्रशिक्षण दिया गया। कार्यशाला के दौरान बच्चों ने कठपुतली के माध्यम से पर्यावरण गीतों के साथ पौधारोपण, जल, जीवन और हरियाली पर चर्चा की।

कठपुतली प्रशिक्षक सुनील सरला ने बताया कि भारत, जो कठपुतली कला की मातृभूमि है, वहां के लोगों को इस अद्भुत कला के बारे में बहुत अधिक जानकारी नहीं है। नई पीढ़ी ने कई वर्षों से कठपुतली कला को नहीं देखा है। उन्होंने कहा, "कठपुतली एक समृद्ध और विविध इतिहास वाली कला है, जो न केवल बच्चों को बल्कि सभी उम्र के लोगों को भी पसंद आती है।"

सुनील सरला ने बताया कि समय के साथ कठपुतली कला में काफी बदलाव हुए हैं। पिछले पचास वर्षों में भारत में नए प्रकार के कठपुतली खेल और पुतुल रंगमंच के नए कलाकार उभरे हैं। इन कलाकारों ने पारंपरिक कठपुतली कला में आधुनिक तत्वों को जोड़ा है, जिससे यह कला और भी आकर्षक बन गई है।

कठपुतली कला बच्चों और परिवारों के लिए शैक्षिक और व्यावहारिक अवसर प्रदान करती है। यह कला न केवल मनोरंजन का साधन है, बल्कि बच्चों के लिए सीखने का एक महत्वपूर्ण माध्यम भी है। कठपुतली के माध्यम से बच्चों को पर्यावरण और सामाजिक मुद्दों के प्रति जागरूक किया जा सकता है।

सुनील सरला ने कहा कि कठपुतली कला का भविष्य उज्ज्वल है, बशर्ते इसे सही तरीके से संरक्षित और प्रचारित किया जाए। उन्होंने इस कला को बचाने और इसे नई पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए जागरूकता फैलाने की जरूरत पर जोर दिया। कार्यशाला में भाग लेने वाले बच्चों ने कठपुतली कला के प्रति गहरी रुचि दिखाई और इस कला को आगे बढ़ाने की प्रतिबद्धता जताई।

इस कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य बच्चों को कठपुतली कला की बारीकियों से अवगत कराना और उन्हें इस कला में प्रशिक्षित करना था। बच्चों ने इस कार्यशाला में सक्रिय रूप से भाग लिया और कठपुतली कला के विभिन्न पहलुओं को सीखा। इस तरह की कार्यशालाएं बच्चों के रचनात्मक विकास में सहायक होती हैं और उन्हें अपनी सांस्कृतिक विरासत के प्रति गर्व का अनुभव कराती हैं।

कठपुतली कार्यशाला ने बच्चों को न केवल मनोरंजन का मौका दिया, बल्कि उन्हें इस कला के माध्यम से सीखने और समझने का भी अवसर प्रदान किया। इस तरह के प्रयासों से न केवल कठपुतली कला को पुनर्जीवित किया जा सकता है, बल्कि इसे नई पीढ़ी के बीच लोकप्रिय भी बनाया जा सकता है।