शरद पूर्णिमा पर युगानुगूंज की आभासी काव्य गोष्ठी का आयोजन
- Post By Admin on Oct 18 2024

मुजफ्फरपुर : शरद पूर्णिमा के पावन अवसर पर साहित्य, संस्कृति और समुदाय को समर्पित राष्ट्रीय संस्था युगानुगूंज की बिहार राज्य इकाई द्वारा स्ट्रीम यार्ड पर एक आभासी काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस राज्य स्तरीय काव्य गोष्ठी में बिहार के विभिन्न जिलों की प्रमुख साहित्यकारों ने भाग लिया और अपनी प्रभावशाली रचनाओं की प्रस्तुति से सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया।
गोष्ठी का संचालन युगानुगूंज की बिहार राज्य प्रभारी एवं सशक्त कवयित्री डॉ. पंकजवासिनी ने किया। उन्होंने अपनी रचना "सिया मैं राम की" के माध्यम से भगवान राम के प्रति माता सीता के अनन्य प्रेम और आस्था को उजागर किया। इसके साथ ही, आधुनिक समाज की पीड़ा को भी उन्होंने अपने दोहों में व्यक्त किया, जिनमें से एक था: "माता-पिता के साथ को, समझे सुत प्राचीन।
पत्नी-बच्चों में सिमट, वरे संस्कृति नवीन।"
सीतामढ़ी से डॉ. आशा प्रभात ने अपनी रचना "जिनके हाथों में होगा हुनर दोस्तों, वो बनायेंगे पानी पर घर दोस्तों" से श्रोताओं का दिल जीत लिया। सुपौल से प्राचार्या डॉ. अलका वर्मा ने "राह तकते हर घड़ी रहती माॅं, न जाने कब कहाॅं सोती है माॅं" कविता के माध्यम से मातृत्व की गहराई को अभिव्यक्त किया।
वैशाली से प्रसिद्ध गीतकार डॉ. प्रतिभा पाराशर ने अपने गाँव की स्मृतियों को "याद आती है बहुत मेरे गाॅंव की, सूखे पुआलों की लगती अलाव की" में पिरोया, जबकि मुजफ्फरपुर से संस्कार भारती की प्रांतीय अध्यक्ष डॉ. उषाकिरण श्रीवास्तव ने "चलो चलें ऐसा कुछ गाएं, मौसम मन भावन हो जाए" गीत से शरद पूर्णिमा की रात्रि को संगीतमय बना दिया।
कार्यक्रम का समापन संस्था की राष्ट्रीय प्रभारी निवेदिता श्रीवास्तव के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ जिसने इस संध्या को अविस्मरणीय बना दिया।