रिसर्च मेथोडोलॉजी इन हिस्ट्री पर सेमिनार, गौतम चंद्रा ने इतिहास शोध पद्धति में आए बदलावों पर किया प्रकाश

  • Post By Admin on Nov 15 2024
रिसर्च मेथोडोलॉजी इन हिस्ट्री पर सेमिनार, गौतम चंद्रा ने इतिहास शोध पद्धति में आए बदलावों पर किया प्रकाश

सीतामढ़ी : जिले के रामदयालु सिंह महाविद्यालय के स्नातकोत्तर इतिहास विभाग के तत्वावधान में गुरूवार को “रिसर्च मेथोडोलॉजी इन हिस्ट्री” विषय पर एक सेमिनार का आयोजन किया गया। इस सेमिनार में मुख्य वक्ता के रूप में डॉ गौतम चंद्रा, प्राध्यापक, विश्वविद्यालय इतिहास विभाग, ने इतिहास में शोध पद्धति के विकास और परिवर्तन के बारे में विस्तार से बताया।

इतिहास शोध में बदलाव और विकास

अपने संबोधन में डॉ गौतम चंद्रा ने ग्रीको-रोमन काल से लेकर उत्तर-आधुनिकता तक इतिहास की शोध पद्धतियों में आए बदलावों पर चर्चा की। उन्होंने बताया कि इतिहास लेखन की शुरुआत हेरोडोटस की प्रसिद्ध पुस्तक “द हिस्टोरीएस” से होती है, जिसमें पहली बार मानव समाज के अतीत को लिखने के लिए स्रोत आधारित वस्तुनिष्ठ लेखन की आवश्यकता पर जोर दिया गया था। उन्होंने कहा कि मध्यकाल में चर्च और धर्म के प्रभाव के कारण आत्मनिष्ठता का प्रभाव बढ़ा लेकिन 19वीं सदी में जर्मन दार्शनिक रैंके के विचारों के बाद प्रत्यक्षवादी दर्शन और विज्ञान के प्रभाव में ऐतिहासिक शोध को वस्तुनिष्ठ और तथ्य आधारित बनाना जरूरी माना गया।

मुख्य वक्ता ने शोधार्थियों को आर्काइव्ज, पुस्तकालय, जनगणना रिपोर्ट्स, गजेटियर और इंटरव्यू जैसे प्राथमिक स्रोतों के माध्यम से वैज्ञानिक और मौलिक शोध करने की सलाह दी। उन्होंने यह भी कहा कि यह जरूरी है कि शोधकर्ता नए दृष्टिकोण और तथ्यों के माध्यम से इतिहास को बेहतर समझें।

शोध पद्धति का महत्व

डॉ रेणु कुमारी, विश्वविद्यालय इतिहास विभाग की अध्यक्ष ने अपने संबोधन में कहा कि शोध पद्धति के माध्यम से शोधकर्ता अपनी परियोजना को सुचारू रूप से संचालित करने के साथ ही उसके वैज्ञानिक और विश्वसनीय प्रभाव को स्थापित करता है। उन्होंने शोध पद्धति को समझने की आवश्यकता पर बल दिया और कहा कि एक सक्षम शोधकर्ता वही होता है जो इन पद्धतियों को सही तरीके से लागू करता है।

अतीत का सही मूल्यांकन

डॉ एम एन रजवी, विभागाध्यक्ष ने ऐतिहासिक शोध की महत्वता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि अतीत को बदलने या मिटाने की क्षमता वर्तमान के पास नहीं है लेकिन विभिन्न दृष्टिकोणों से उसके घटनाओं की व्याख्या की जा सकती है। उनका मानना था कि इतिहास में शोध का उद्देश्य नए तथ्यों की खोज और पुनः व्याख्याओं के द्वारा सत्य की स्थापना करना है।

समाज के लिए शोध की भूमिका

डॉ अनिता सिंह, महाविद्यालय की प्राचार्य, ने सेमिनार की अध्यक्षता करते हुए कहा कि इस प्रकार के सेमिनार छात्रों को इतिहास को समझने के नए दृष्टिकोण प्रदान करते हैं। उन्होंने सेमिनार में शामिल सभी वक्ताओं का आभार व्यक्त किया और छात्रों के उज्जवल भविष्य की कामना की।

सम्मान और धन्यवाद ज्ञापन

सेमिनार के दौरान डीएम, एसपी और अन्य अधिकारियों द्वारा विभिन्न शोधकर्ताओं और समाजसेवियों को सम्मानित किया गया। डॉ अजमत अली ने विषय प्रवेश किया, डॉ ललित किशोर ने मंच संचालन किया और डॉ मनीष कुमार शर्मा ने धन्यवाद ज्ञापन दिया।

मौके पर अन्य वक्ताओं में डॉ संजय कुमार सुमन, डॉ नीलिमा झा, डॉ रमेश प्रसाद गुप्ता, और डॉ सत्येंद्र प्रसाद सिंह ने भी शोध पद्धतियों के नवीन आयामों पर चर्चा की। इस सेमिनार में महाविद्यालय के सैंकड़ों छात्र-छात्राएं और इतिहास विभाग के शिक्षकों ने भाग लिया।

सेमिनार के प्रमुख बिंदुओं में इतिहास में शोध पद्धति का विकास: ग्रीको-रोमन काल से उत्तर-आधुनिकता तक, प्राथमिक स्रोतों का अध्ययन और उनका महत्व, शोध पद्धति के वैज्ञानिक आधार की समझ, सत्य की स्थापना और मानवीय समाज की प्रगति के लिए ऐतिहासिक शोध रहे।

इस सेमिनार ने छात्रों और शोधकर्ताओं के लिए इतिहास के शोध के विज्ञान और वस्तुनिष्ठता को बेहतर समझने का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान किया।