मुन्ना शुक्ला क्या राजनीति के हुए शिकार, मुन्ना शुक्ला और मंटू तिवारी को आजीवन कारावास
- Post By Admin on Oct 03 2024
मुजफ्फरपुर : वैशाली के पूर्व सांसद प्रत्याशी मुन्ना शुक्ला पर एक नया कहर आ बरपा है। आपको बताते चले कि मुन्ना शुक्ला जदयू पार्टी का हाथ छोड़ इस लोक सभा चुनाव में राजद का हाथ थाम लिए थे । वैशाली लोकसभा से चुनाव तो वे हार गए लेकिन इस बार उन्होंने बड़े ही मजबूत उम्मीदवार के रूप में खुद को साबित किया था। अपनी हार के बाद भी मुन्ना शुक्ला राजद के प्रति इन दिनों काफी समर्पित देखे जा रहे थे कयास लगाया जा रहा था कि आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में भूमिहार समाज का वोट इकट्ठा करने के लिए वो राजद पार्टी के साथ पूरे बिहार भ्रमण करने की तैयारी कर रहे थे । उनकी सक्रियता से विरोधी दल के खेमें में काफी हलचल मचा हुआ था । बिहार में भूमिहार समाज का राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका माना जाता है ऐसे में मुन्ना शुक्ला से होने वाले नुकसान को बीजेपी और जदयू दोनों दल अपने-अपने नजरिए से देख रहे थे । इसी बीच बृजबिहारी हत्याकांड का मामला पुनः गरमा गया और उक्त मामलें में सुप्रीम कोर्ट ने 6 लोगों को बरी करते हुए मुन्ना शुक्ला और मंटू तिवारी को आजवीन कारावास की सजा सुना दी है । सुप्रीम कोर्ट के फैसला आने के बाद से भूमिहार समाज सहित राजद समर्थकों में काफी निराशा है । राजद कार्यकर्ताओं ने इसे बीजेपी का साजिश करार दिया है ।
आपको बताते चले कि सुप्रीम कोर्ट ने बिहार के पूर्व विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री बृज बिहारी प्रसाद की हत्या से जुड़े मामले में गुरुवार को अहम फैसला सुनाया है। अदालत ने इस मामले में पूर्व सांसद सूरजभान सिंह, राजन तिवारी समेत छह लोगों को बरी कर दिया, जबकि पूर्व विधायक मुन्ना शुक्ला और मंटू तिवारी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। सुप्रीम कोर्ट ने दोनों आरोपियों को 15 दिन के भीतर सरेंडर करने का निर्देश दिया है। इससे पहले, 2014 में पटना हाईकोर्ट ने इस मामले में सभी आठ आरोपियों को बरी कर दिया था। लेकिन बृज बिहारी प्रसाद की पत्नी और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की नेता रमा देवी और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी। इस अपील पर सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच ने 21 और 22 अगस्त को सुनवाई पूरी कर ली थी और उसके बाद फैसला सुरक्षित रखा गया था, जिसे अब अदालत ने सुनाया है। बृज बिहारी प्रसाद की हत्या 1998 में हुई थी, जब वे पटना के एक अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती थे। उस समय बिहार में राबड़ी देवी की सरकार थी। घटना के दिन बृज बिहारी प्रसाद अस्पताल के कैंपस में टहल रहे थे, तभी वहां पहुंचे बदमाशों ने उन्हें गोली मार दी थी। इस घटना ने बिहार की राजनीति में भूचाल ला दिया था और राज्य में कानून-व्यवस्था पर भी गंभीर सवाल खड़े किए थे। इस हत्याकांड के बाद मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई थी। जांच के बाद निचली अदालत ने 2009 में इस मामले के आठ आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। इनमें सूरजभान सिंह, विजय शुक्ला उर्फ मुन्ना शुक्ला, मुकेश सिंह, राजन तिवारी, ललन सिंह, मंटू तिवारी, राम निरंजन चौधरी, सुनील सिंह और शशि कुमार राय शामिल थे। हालांकि, 2014 में पटना हाईकोर्ट ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया था, जिसके खिलाफ रमा देवी और सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के बाद पूर्व सांसद सूरजभान सिंह, राजन तिवारी और अन्य चार आरोपियों को बरी कर दिया, लेकिन पूर्व विधायक मुन्ना शुक्ला और मंटू तिवारी को दोषी मानते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई। कोर्ट के इस फैसले के बाद अब मुन्ना शुक्ला और मंटू तिवारी को 15 दिनों के भीतर अदालत के समक्ष आत्मसमर्पण करना होगा।बृज बिहारी प्रसाद की हत्या के बाद उनकी पत्नी रमा देवी ने राजनीति में कदम रखा था और भाजपा में शामिल हो गई थीं। उन्होंने 2019 में शिवहर लोकसभा सीट से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीतकर संसद पहुंचीं। हालांकि, 2024 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया है। इस मामले में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने एक बार फिर बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी है। मुन्ना शुक्ला और मंटू तिवारी को आजीवन कारावास की सजा से उनके समर्थकों को बड़ा झटका लगा है, वहीं बरी किए गए छह आरोपियों के परिवारों के लिए यह एक राहत की खबर है।