कांवड़ यात्रा पर सियासी घमासान : दुकानों पर नाम-पहचान अनिवार्य करने के फैसले पर सपा-भाजपा आमने-सामने

  • Post By Admin on Jul 03 2025
कांवड़ यात्रा पर सियासी घमासान : दुकानों पर नाम-पहचान अनिवार्य करने के फैसले पर सपा-भाजपा आमने-सामने

लखनऊ : उत्तर प्रदेश में आगामी कांवड़ यात्रा को लेकर एक बार फिर सियासत गरमा गई है। योगी सरकार द्वारा यात्रा मार्ग पर स्थित सभी दुकानों के साइनबोर्ड पर मालिक का नाम और पहचान अनिवार्य करने के फैसले को लेकर समाजवादी पार्टी (सपा) और भाजपा के बीच तीखी जुबानी जंग छिड़ गई है।

सपा ने उठाए सवाल, भाजपा ने बताया "तुष्टिकरण का चेहरा"

सपा नेताओं ने इस फैसले को समुदाय विशेष को निशाना बनाने वाला कदम बताया है और सवाल उठाया कि आखिर इस तरह की पहचान की अनिवार्यता किस उद्देश्य से लाई जा रही है। पूर्व सांसद एसटी हसन ने बयान देते हुए कहा कि सरकार धार्मिक यात्राओं की आड़ में सामाजिक तनाव को बढ़ावा दे रही है।

विपक्ष के इन आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने कहा,
"समाजवादी पार्टी तुष्टिकरण की राजनीति की आदी है। हम कानून-व्यवस्था चाक-चौबंद रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं। कांवड़ यात्रा में शामिल भक्तों की सुविधा और सुरक्षा हमारी प्राथमिकता है।"

उन्होंने स्पष्ट किया कि दुकानों पर नाम और पहचान दर्शाना पारदर्शिता और उपभोक्ता अधिकारों की दृष्टि से आवश्यक है। "अगर कोई खाने-पीने का सामान बेच रहा है तो उसे नाम लिखने में दिक्कत क्यों होनी चाहिए?" उन्होंने पलटवार करते हुए पूछा।

शरिया कानून की मानसिकता: भाजपा मंत्रियों का तीखा हमला

राज्य सरकार में मंत्री दयाशंकर सिंह ने भी सपा पर हमला बोलते हुए कहा,
"मैं एक मंत्री होने के बावजूद जब कहीं जाता हूं, तो पहचान पत्र दिखाता हूं। फिर दुकानदार को अपनी पहचान बताने में आपत्ति क्यों?"
उन्होंने कहा कि पहचान छिपाने की प्रवृत्ति से असामाजिक तत्वों को घुसपैठ का मौका मिलता है।

वहीं, मंत्री अनिल राजभर ने एसटी हसन के बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि
"नाम छिपाना किस मजबूरी का हिस्सा है? क्या यह आतंकवाद की मानसिकता नहीं है?"
उन्होंने यह भी कहा कि सावन के पवित्र महीने में कांवड़ यात्रियों की सुरक्षा और स्वास्थ्य की निगरानी में कोई राजनीति नहीं होनी चाहिए।

सियासत बनाम सुरक्षा?

जहां भाजपा इसे कानून-व्यवस्था और पारदर्शिता से जोड़ रही है, वहीं सपा इसे धार्मिक भेदभाव और पहचान आधारित राजनीति करार दे रही है। कांवड़ यात्रा की पृष्ठभूमि में नाम-पहचान को अनिवार्य करने का यह फैसला अब धार्मिक श्रद्धा से अधिक राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का अखाड़ा बन गया है।

अब देखना यह है कि सावन के इस धार्मिक आयोजन को शांति से सम्पन्न कराने में प्रशासन कितनी सजगता बरतता है और क्या यह राजनीतिक गर्मी सामाजिक समरसता को प्रभावित करेगी?