वीर क्रांतिकारी तेलंगा खड़िया की 219वीं जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित
- Post By Admin on Feb 10 2025

रांची : गुमला जिले के मुरगू में 9 फरवरी 1806 को जन्मे आदिवासी योद्धा तेलंगा खड़िया की 219वीं जयंती पर उन्हें याद किया गया। उन्हें उनकी वीरता और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ संघर्ष के लिए श्रद्धांजलि अर्पित की गई।
इतिहासकारों के अनुसार, तेलंगा खड़िया ने 1857 की क्रांति के कई वर्षों पहले अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह की शुरुआत की थी। उन्होंने झारखंड के गांव-गांव में पंचायतें लगाकर आदिवासी समुदाय को एकजुट किया और शोषण के खिलाफ संघर्ष की चिंगारी सुलगा दी। यह पंचायतें ‘जूरी पंचायत’ के नाम से प्रसिद्ध हुईं, जिसमें वे अपने समर्थकों को युद्ध कौशल सिखाते थे। इन पंचायतों के माध्यम से उन्होंने हजारों लोगों को आंदोलन में शामिल किया और हथियारबंद दस्ते तैयार किए।
तेलंगा खड़िया की बढ़ती लोकप्रियता से घबराकर अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर कोलकाता की जेल में बंद कर दिया। हालांकि, जेल में रहते हुए भी उनका संघर्ष रुक नहीं पाया। जेल से रिहा होने के बाद भी उन्होंने अंग्रेजों और उनके समर्थक जमींदारों के खिलाफ संघर्ष जारी रखा।
23 अप्रैल 1880 को सिसई मैदान में जब वह अपने अनुयायियों को हथियारों का प्रशिक्षण दे रहे थे, तभी अंग्रेजी हुकूमत के एक जमींदार ने उन्हें धोखे से गोली मार दी, जिससे वह शहीद हो गए। तेलंगा खड़िया की वीरता और बलिदान को आज भी झारखंड के लोग याद करते हैं। उनका समाधि स्थल गुमला जिले के चंदाली में स्थित है, जबकि मुरगू में उनकी एकमात्र प्रतिमा स्थापित की गई है।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने तेलंगा खड़िया की जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए सोशल मीडिया पर लिखा, “अंग्रेज शोषकों के खिलाफ लड़ने वाले झारखंड की क्रांतिकारी भूमि के वीर सपूत अमर वीर शहीद तेलंगा खड़िया की जयंती पर शत-शत नमन।”
रामदयाल मुंडा जनजातीय शोध संस्थान द्वारा कराए गए शोध के अनुसार, तेलंगा खड़िया का जन्म एक साधारण किसान परिवार में हुआ था। उनकी शौर्य गाथाएं जनजातीय गीतों में गाई जाती हैं, जिसमें उनका युद्ध कौशल और साहस का वर्णन मिलता है। वे अंग्रेजी राइफल और बंदूक का मुकाबला अपनी तलवार से करते थे, मानो उन्हें ईश्वरीय वरदान प्राप्त था।
तेलंगा खड़िया के वंशज आज भी मुरगू से कुछ दूरी पर स्थित घाघरा गांव में रहते हैं। खड़िया जाति के लोग आज भी अपने आप को तेलंगा के वंशज मानते हैं और उन्हें ईश्वर के रूप में पूजते हैं।
तेलंगा खड़िया की जयंती पर आयोजित कार्यक्रमों में जिले के विभिन्न जनप्रतिनिधियों और जनजातीय कार्यकर्ताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की और उनके योगदान को याद किया। उनके संघर्ष और बलिदान ने झारखंड के लोगों को हमेशा प्रेरित किया है और उनका नाम इतिहास में हमेशा अमर रहेगा।