वक्फ बोर्ड संशोधन बिल पर एडवोकेट सिरीश शांडिल्य ने किया बड़ा सवाल
- Post By Admin on Apr 05 2025

लखीसराय : वक्फ बोर्ड संशोधन बिल के संसद में पारित होते ही देशभर में राजनीतिक और धार्मिक बहसें तेज हो गई हैं। इस बीच सामाजिक कार्यकर्ता एवं आवाज-ए-सिरीश शांडिल्य के संस्थापक सह अध्यक्ष, एडवोकेट सिरीश कुमार शांडिल्य ने एक विस्तृत प्रेस विज्ञप्ति जारी कर बिल की संवैधानिकता पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं।
एडवोकेट शांडिल्य ने कहा कि भारत का भूमि स्वामित्व इतिहास और संविधान की व्यवस्था अनेक विरोधाभासों से ग्रसित है। उन्होंने कहा कि आज़ादी से पूर्व देश में जमींदारी प्रथा थी, जिसमें भूमि पर अधिकार जमींदार का होता था और रैयत महज उपयोगकर्ता होता था। लेकिन 1950 में लागू लैंड रिफॉर्म एंड सिलिंग एक्ट के बाद सरकार ने सभी जमीनों का स्वामित्व अपने पास ले लिया और नागरिकों को रैयत घोषित कर दिया।
उन्होंने सवाल उठाया कि जब सरकार ही देश की ज़मीनों की मालिक बन चुकी है, तो फिर वक्फ बोर्ड और धार्मिक न्यास बोर्ड एक्ट जैसे प्रावधानों की ज़रूरत क्यों पड़ रही है? धार्मिक संस्थाओं को लाखों एकड़ ज़मीन किस आधार पर सौंपी गई? क्या यह संविधान सम्मत है या फिर किसी विशेष वर्ग को लाभ पहुंचाने का प्रयास? शांडिल्य ने यह भी पूछा कि जब देश के नागरिक सिर्फ रैयत हैं, तो उनके नाम पर ज़मीन की खरीद-बिक्री कैसे हो रही है? क्या यह पूरी प्रक्रिया संविधान की परिधि में आती है? उन्होंने दो टूक कहा कि “भारत में शासन संविधान से चलने की बात तो की जाती है, पर हकीकत इससे अलग है।” उन्होंने कहा कि वे 2005 से लगातार यह मांग कर रहे हैं कि देश की शासन प्रणाली संविधान के अनुरूप होनी चाहिए। साथ ही उन्होंने आरोप लगाया कि प्राकृतिक संसाधनों पर अब भी शक्तिशाली लोगों का नियंत्रण है, जिससे सामाजिक व आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों का शोषण जारी है।
एडवोकेट शांडिल्य का यह बयान वक्फ बोर्ड संशोधन बिल पर हो रही बहस को एक नए संवैधानिक और सामाजिक नजरिए से देखने के लिए प्रेरित करता है। उन्होंने सरकार से यह स्पष्ट करने की मांग की कि ऐसे कानूनों की वैधता, पारदर्शिता और आवश्यकता क्या है और यह आम जनता के हित में कितना उचित है।