माँ शैलपुत्री की उपासना से अमंगल बनेगा मंगल, मिलेगा अपार स्नेह

  • Post By Admin on Oct 03 2024
माँ शैलपुत्री की उपासना से अमंगल बनेगा मंगल, मिलेगा अपार स्नेह

नई दिल्ली : शारदीय नवरात्र का आरंभ हस्त नक्षत्र में 3 अक्टूबर गुरुवार से हो रहा है। कलश स्थापन करने के लिए हस्त नक्षत्र सर्व-सिद्धीदायक माना जाता होता है। कलश स्थापना के शुभ मुहूर्त की जानकारी देते हुए पंडित जय किशोर मिश्र ने बताया कि,जयंती कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त शाम 3 बजकर 25 मिनट तक है। उसके बाद चित्रा नक्षत्र हो जा रहा है जो की निषिद्ध माना जाता है। 
 
माँ दुर्गा का प्रथम रूप :

          वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
          वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीम् ।।                                                

माँ दुर्गा के पहले स्वरूप को 'शैलपुत्री' के नाम से जाना जाता हैं। आदिशक्ति रूपांतरण के बाद पर्वतराज हिमालय के यहां पुत्री के रूप में जन्म होने के कारण इनका यह ‘शैलपुत्री' नाम पड़ा था। समस्त प्रकृति इन्हीं की स्वरूप मानी जाती हैं। वृषभ पर सवार माता के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बायें हाथ में कमल पुष्प सुशोभित है। यह नव दुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। नवरात्र-पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है।

पार्वती, हैमवती भी माता शैलपुत्री का ही नाम हैं। उपनिषद् की एक कथा के अनुसार, हैमवती स्वरूप से ही देवताओं का गर्व-भंजन किया था। 

नव दुर्गाओं में प्रथम शैलपुत्री दुर्गा का महत्त्व और शक्तियाँ अनन्त हैं। माता शैलपुत्री की उपासना करने से अभिष्ट की सिद्धि होती हैं। यदि इनकी उपासना सन्तान भाव से की जाए तो समस्त अमंगल मंगल में बदल जाता हैं और यह भक्तों को अपार स्नेह प्रदान करती हैं। 

प्रथम रूप मे शैलपुत्री होने से वे समस्त सामग्रियां उन्हें समर्पित की जाती हैं, जो माता पार्वती को प्रिय हैं। इन्हें बेलपत्र के साथ श्वेत सामग्रियां सर्वाधिक प्रिय हैं एवं भोग में गाय के दूध से बने शुद्ध घी से बनी मिठाइयों का भोग अति प्रिय है।