तेजस्वी का नौकरी कार्ड हुआ फेल, महिला वोटर और महागठबंधन की कलह बनी वोटकटनी
- Post By Admin on Nov 14 2025
नई दिल्ली : बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे साफ होते ही यह स्पष्ट हो गया है कि महागठबंधन का दांव, खासकर तेजस्वी यादव का सबसे बड़ा वादा—हर घर सरकारी नौकरी—मतदाताओं को प्रभावित करने में नाकाम रहा। चुनाव के शुरुआती रुझानों से ही यह दिखने लगा था कि तेजस्वी द्वारा पेश किया गया यह सपनों का पैकेज जनता के भरोसे की कसौटी पर खरा नहीं उतर पाया।
राजद की उम्मीदों पर पानी फेरते हुए चुनाव परिणामों ने महागठबंधन को करारा झटका दिया। ‘सन ऑफ मल्लाह’ जैसे चेहरे पूरी तरह साफ हो गए और कांग्रेस की ताकत पंजे की उंगलियों जितनी भी न बच सकी। ऐसा परिणाम शायद खुद तेजस्वी ने भी नहीं सोचा था।
महिला वोटर बने गेमचेंजर
इस चुनाव में महिला मतदाताओं की भागीदारी ऐतिहासिक रही। 71.78% महिलाओं ने अपने वोट डाले, जो पुरुषों के 62.98% से काफी आगे रहा। महिला वोटरों की यह उत्साही उपस्थिति सीधे तौर पर नीतीश कुमार के पक्ष में जाती दिखी। तेजस्वी ने ‘माई बहिन मान योजना’ के साथ महिलाओं को साधने की कोशिश की, लेकिन यह रणनीति उम्मीद के मुताबिक असर नहीं छोड़ सकी।
अभी अधूरा ब्लूप्रिंट, वादों पर अविश्वास
तेजस्वी यादव ने हर घर नौकरी, पेंशन, महिला सशक्तीकरण जैसे बड़े वादों की बारिश तो की, लेकिन इनके लिए फंडिंग, लागू करने की समयसीमा और ठोस योजना गायब रही। जनता ने इसे केवल चुनावी हवा-हवाई बयानबाजी माना। दूसरी ओर, एनडीए ने इसी कमजोरी को जमकर भुनाया और तेजस्वी के वादों को अव्यावहारिक बताकर वोटर माइंडसेट पर पकड़ बनाई।
महागठबंधन की अंदरूनी खींचतान खुलकर सामने आई
सीट बंटवारे में देरी, कई सीटों पर सहयोगियों का एक-दूसरे के खिलाफ उम्मीदवार उतारना और पर्दे के पीछे की खींचतान—मतदाताओं की नजरों से कुछ भी नहीं बचा। ‘तेजस्वी प्रण’ नाम के घोषणापत्र से लेकर उम्मीदवारों की घोषणा तक, हर कदम पर महागठबंधन असमंजस में दिखा। यह छवि गठबंधन के लिए भारी पड़ी।
जंगलराज की गूंज और समर्थकों का व्यवहार बना भय का कारण
तेजस्वी चाहे जितना पुरानी छवि से दूरी बनाना चाहते थे, ‘जंगलराज’ की बहस उनका पीछा नहीं छोड़ सकी। चुनाव अभियान के दौरान आरजेडी समर्थकों और कुछ उम्मीदवारों की दबंगई भरी भाषा ने भी जनता में असहजता पैदा की। मतदाताओं के मन में यह डर बैठ गया कि सत्ता मिलते ही हालात 1990-2000 के दौर की याद दिला सकते हैं।
‘यादव एकीकरण’ की छवि से गैर-यादव वोटर दूर हुए
राजद द्वारा 144 में से 52 सीटों पर यादव उम्मीदवार उतारना महागठबंधन के वोट-बैंक को सीमित करने वाला कदम साबित हुआ। गैर-यादव पिछड़े, अगड़े और अतिपिछड़े वर्ग इस जातीय संदेश से असहज हो गए और एनडीए की ओर खिसक गए।
एनडीए की एकजुटता और मोदी-नीतीश की केमिस्ट्री फायदेमंद रही
इसके उलट, एनडीए ने सीट शेयरिंग से लेकर प्रचार तक एकता का संदेश दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार की संयुक्त अपील ने पूरे बिहार में वोटरों का भरोसा बटोरने में अहम भूमिका निभाई।
लालू की दूरी, पोस्टर पॉलिटिक्स और परिवार की कलह
तेजस्वी ने अपने पोस्टरों पर ‘नई पीढ़ी’ की छवि चमकाने के चक्कर में लालू यादव की तस्वीरें छोटी कर दीं, जिससे कार्यकर्ताओं में असंतोष पैदा हुआ। चुनाव प्रचार में लालू की गैरमौजूदगी और परिवार के भीतर खींचतान ने भी आरजेडी समर्थकों में निराशा फैलाई और गठबंधन की पकड़ कमजोर कर दी।