बढ़ियां तो हैं नीतीशे कुमार : 71 प्रतिशत महिला वोटिंग ने एनडीए की जीत को दिया किक-स्टार्ट

  • Post By Admin on Nov 14 2025
बढ़ियां तो हैं नीतीशे कुमार : 71 प्रतिशत महिला वोटिंग ने एनडीए की जीत को दिया किक-स्टार्ट

नई दिल्ली : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजे आने ही वाले हैं, लेकिन शुरुआती रुझान साफ संकेत दे रहे हैं कि जनता एक बार फिर एनडीए पर भरोसा जता रही है। लोकसभा चुनाव की तरह इस बार भी मतदाताओं ने महागठबंधन के नैरेटिव से दूरी बनाई है।

सबसे बड़ी बात—बिहार ने 63 साल का रिकॉर्ड तोड़ते हुए 67% वोटिंग दर्ज की, और इस ऐतिहासिक जनमत की कमान महिलाओं ने संभाली। 71% महिला मतदान, जो पुरुषों से लगभग 10% अधिक है, न केवल नया रिकॉर्ड है बल्कि इस चुनाव की राजनीतिक दिशा तय करने वाला कारक भी।

महिला वोटों की लहर और ‘बढ़ियां तो हैं नीतीशे कुमार’ का असर

पिछले दो दशकों में नीतीश कुमार की सरकार ने महिला सशक्तिकरण पर जिस निरंतरता से काम किया, उसका सीधा असर इस चुनाव में दिखा।
चुनाव से ठीक पहले शुरू की गई मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना, जिसमें लाखों महिलाओं के खातों में ₹10,000 भेजे गए, ने प्रभाव बढ़ाया।

इसके अलावा—

  • पंचायती राज में पहली बार महिलाओं को बड़ा आरक्षण

  • साइकिल व पोशाक योजना

  • छात्रवृत्ति

  • स्वयं सहायता समूहों की मजबूती

  • 33% सरकारी नौकरियों और 50% पंचायतों में आरक्षण

इन योजनाओं ने ग्रामीण और शहरी दोनों वर्गों की महिलाओं में राजनीतिक जागरूकता और आत्मनिर्भरता को नई दिशा दी।

शराबबंदी ने नीतीश के लिए बनाया स्थायी ‘महिला वोट बैंक’

2016 की शराबबंदी महिलाओं के लिए सबसे बड़ा भावनात्मक और सामाजिक मुद्दा बनी हुई है। घर-परिवार में शांति और कलह से राहत ने महिला मतदाताओं के बीच नीतीश सरकार के लिए गहरा भरोसा खड़ा किया।

31 लाख ‘लखपति दीदी’—कल्याणकारी मॉडल की नई ताकत

2023 में शुरू हुई योजना के बाद आज 31 लाख से अधिक जीविका दीदियां लखपति बन चुकी हैं।
2020 में इस लक्ष्य के दूर होने के बावजूद महिलाएं नीतीश के साथ थीं, और अब आय बढ़ने पर उनका समर्थन और मजबूत हुआ है।

मतदान का नया ट्रेंड: महिलाएं सिर्फ संख्या नहीं, परिणाम तय करने वाली शक्ति बनीं

दिलचस्प बात यह रही कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं का पंजीकृत आधार छोटा होने के बावजूद उनका मतदान अधिक रहा। विशेषज्ञों का मानना है कि 10% का यह मतदान अंतर निर्णायक राजनीतिक बदलाव का सूचक है।

साथ ही दिवाली–छठ के बीच 12,000 से अधिक विशेष ट्रेनों के संचालन ने भी बाहरी मतदाताओं को घर पहुंचने में मदद की—इससे कुल मतदान और बढ़ा।

2010 से लगातार चार चुनाव—महिलाएं पुरुषों से आगे

बिहार की महिला मतदाता अब केवल ‘पोलिंग बूथ की भीड़’ नहीं, बल्कि राजनीतिक परिणामों की दिशा तय करने वाली सबसे प्रभावशाली शक्ति बन चुकी हैं।
50% से बढ़कर अब 70% से ऊपर मतदान—यह सिर्फ सामाजिक परिवर्तन नहीं, बल्कि एक राजनीतिक क्रांति है।

इस चुनाव ने साफ कर दिया कि बिहार में इस बार महिला मतदाताओं ने सत्ता विरोधी लहर को काटते हुए नतीजे नीतीश कुमार की तरफ मोड़ दिए। उनका बढ़ता राजनीतिक प्रभाव हर पार्टी के समीकरण को प्रभावित कर रहा है, और इस बार तो उन्होंने सिर्फ हिस्सेदारी नहीं बढ़ाई—बल्कि परिणाम तय कर दिए।