डिमेंशिया और अल्जाइमर के इलाज में मददगार हो सकती हैं बिल्लियां : अध्ययन

  • Post By Admin on Aug 12 2025
डिमेंशिया और अल्जाइमर के इलाज में मददगार हो सकती हैं बिल्लियां : अध्ययन

नई दिल्ली : यूके की यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग के वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में पाया है कि बिल्लियों में डिमेंशिया की स्थिति इंसानों में अल्जाइमर रोग से काफी हद तक मिलती-जुलती है। शोधकर्ताओं का मानना है कि इससे बिल्लियां इस बीमारी के अध्ययन और संभावित इलाज के लिए एक अहम मॉडल साबित हो सकती हैं।

यूरोपियन जर्नल ऑफ न्यूरोसाइंस में प्रकाशित इस शोध में पता चला कि डिमेंशिया से पीड़ित बिल्लियों के दिमाग में टॉक्सिक प्रोटीन 'एमिलॉइड-बीटा' का जमाव होता है, जो अल्जाइमर रोग की प्रमुख पहचान है। उम्रदराज बिल्लियों में यह प्रोटीन दिमागी कार्यक्षमता और मेमोरी लॉस को प्रभावित करता है।

शोध दल के प्रमुख लेखक और डिस्कवरी ब्रेन साइंसेज केंद्र के शोधकर्ता रॉबर्ट आई. मैकगीचन के अनुसार, पहले अल्जाइमर के अध्ययन के लिए जेनेटिक रूप से बदले गए रोडेंट मॉडल (चूहे, गिलहरी, ऊदबिलाव आदि) का इस्तेमाल किया जाता था, लेकिन उनमें डिमेंशिया स्वाभाविक रूप से नहीं होता। इसके विपरीत, बिल्लियों में यह बीमारी उम्र के साथ प्राकृतिक रूप से विकसित होती है, जिससे इनके अध्ययन से अधिक सटीक जानकारियां मिल सकती हैं।

अध्ययन में 25 मृत बिल्लियों के दिमाग का विश्लेषण किया गया, जिनमें से कुछ डिमेंशिया से पीड़ित थीं। शक्तिशाली माइक्रोस्कोपी से पता चला कि प्रभावित बिल्लियों के दिमाग के सिनैप्स—जो ब्रेन सेल्स के बीच संदेश भेजने का काम करते हैं—में एमिलॉइड-बीटा का जमाव था। सिनैप्स के नुकसान से अल्जाइमर रोगियों में याददाश्त और सोचने की क्षमता घट जाती है।

शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि डिमेंशिया के दौरान दिमाग की सहायक कोशिकाएं, जैसे एस्ट्रोसाइट्स और माइक्रोग्लिया, खराब हो चुके सिनैप्स को निगल लेती हैं। सामान्य परिस्थितियों में ‘सिनैप्टिक प्रूनिंग’ नामक यह प्रक्रिया दिमाग के विकास में मदद करती है, लेकिन डिमेंशिया में यह उल्टा नुकसान पहुंचाती है।

वैज्ञानिकों का कहना है कि यह शोध न केवल बिल्लियों में डिमेंशिया को बेहतर तरीके से समझने में मदद करेगा, बल्कि इंसानों में अल्जाइमर रोग के लिए नए और प्रभावी इलाज विकसित करने की दिशा में भी अहम भूमिका निभा सकता है।