मुजफ्फरपुर की दृष्टिहीन प्रोफेसर संगीता अग्रवाल, ब्रेललिपि से संस्कृत सिखाने की प्रेरक कहानी

  • Post By Admin on Sep 22 2024
मुजफ्फरपुर की दृष्टिहीन प्रोफेसर संगीता अग्रवाल, ब्रेललिपि से संस्कृत सिखाने की प्रेरक कहानी

मुजफ्फरपुर : जिले में एक ऐसी प्रेरणादायक शिक्षिका हैं, जो जन्म से आंखों से देख नहीं सकतीं, लेकिन अपनी मेहनत, लगन और दृढ़ संकल्प के बल पर उन्होंने न केवल पढ़ाई पूरी की बल्कि संस्कृत की प्रोफेसर भी बनीं। ब्रेललिपि के माध्यम से वह छात्रों को पढ़ाती हैं और छात्रों का कहना है कि उन्हें कभी भी महसूस नहीं हुआ कि उनकी मैम आंखों से देख नहीं सकतीं। वह जो पढ़ाती हैं, वही किताबों में लिखा होता है।

डॉ. संगीता अग्रवाल, जो जवाहरलाल रोड की निवासी हैं, बिहार विश्वविद्यालय में संस्कृत की प्रोफेसर हैं। वह बिहार विश्वविद्यालय की एकमात्र दृष्टिहीन प्रोफेसर हैं, लेकिन उनके इस शारीरिक अक्षम होने ने कभी उनकी क्षमता को कम नहीं किया। अपनी शिक्षा और समर्पण के बल पर उन्होंने वह मुकाम हासिल किया है जो प्रेरणा का स्रोत है। उन्होंने अपनी पूरी यात्रा में एक लंबा सफर तय किया है और आज उनके इस अभूतपूर्व प्रयास को राष्ट्रपति ने भी पुरस्कार से सम्मानित किया है।

शुभम संस्था की स्थापना और बच्चों की सेवा 

डॉ. संगीता अग्रवाल अपने वेतन का पूरा हिस्सा दिव्यांग बच्चों की शिक्षा और जीवनयापन पर खर्च करती हैं। उनकी "शुभम" संस्था में करीब 80 बच्चे पढ़ते हैं, जिनमें कुछ दृष्टिहीन हैं और कुछ मूक-बधिर। 1993 में दिल्ली विश्वविद्यालय से पीएचडी की डिग्री प्राप्त करने के बाद, उन्होंने 1996 में बिहार विश्वविद्यालय में बीपीएससी के माध्यम से एलएस कॉलेज में प्रोफेसर के पद पर योगदान दिया। वर्तमान में वह पीजी विभाग में संस्कृत की प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं।

जीवन की कठिनाइयों से मिली प्रेरणा

संगीता अग्रवाल ने अपने जीवन की कठिनाइयों को अपनी प्रेरणा बनाया। बचपन में दृष्टिहीनता के कारण उनके माता-पिता काफी चिंतित रहते थे, क्योंकि उस समय बिहार में दृष्टिबाधित बच्चों के लिए पढ़ाई की कोई विशेष व्यवस्था नहीं थी। उनके पिता ने उन्हें 7 साल की उम्र में दिल्ली के दृष्टिहीन विद्यालय में दाखिला दिलाया, जहां से उन्होंने 28 साल की उम्र तक पढ़ाई की। 1993 में उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से पीएचडी की डिग्री हासिल की और शिक्षा के क्षेत्र में अपना नाम स्थापित किया।

80 बच्चों की मां और मार्गदर्शक

शुभम संस्था की स्थापना के बाद से ही, प्रो. संगीता अग्रवाल ने विवाह नहीं किया और अपने जीवन को उन 80 बच्चों की सेवा में समर्पित कर दिया है, जो उनकी संस्था में पढ़ते हैं। वह इन बच्चों की मां के रूप में उनकी देखभाल करती हैं और सुनिश्चित करती हैं कि वे आत्मनिर्भर बन सकें। अब तक 70 से अधिक बच्चे उनकी संस्था से शिक्षा प्राप्त कर विभिन्न विभागों में नौकरी कर रहे हैं।

प्रो. संगीता अग्रवाल की यह कहानी न केवल प्रेरणादायक है, बल्कि समाज के लिए यह संदेश भी है कि किसी भी प्रकार की शारीरिक अक्षमता सफलता की राह में रुकावट नहीं बन सकती, अगर इंसान के पास मेहनत और आत्मविश्वास हो।