कश्मीरी पंडित नर्स सरला भट्ट हत्याकांड में एसआईए की बड़ी कार्यवाई, श्रीनगर में 8 ठिकानों पर छापेमारी
- Post By Admin on Aug 12 2025

श्रीनगर : जम्मू-कश्मीर की स्टेट इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (एसआईए) ने 1990 में कश्मीरी पंडित नर्स सरला भट्ट की सनसनीखेज हत्या के मामले में मंगलवार को श्रीनगर शहर के विभिन्न हिस्सों में बड़े पैमाने पर छापेमारी की। सीआईडी की विशेष शाखा एसआईए की टीम ने पुलिस और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के साथ संयुक्त रूप से सुबह-सुबह 8 अलग-अलग स्थानों पर यह तलाशी अभियान चलाया।
आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, यह छापेमारी उन लोगों की तलाश में की गई, जिनका सीधा या परोक्ष रूप से इस हत्याकांड से संबंध होने का संदेह है। इस दौरान कई महत्वपूर्ण दस्तावेज, डिजिटल उपकरण और संदिग्ध सामग्री जब्त की गई है, जिन्हें जांच एजेंसी ने आगे की जांच के लिए अपने कब्जे में ले लिया है।
सरला भट्ट, जो मात्र 27 वर्ष की थीं, अनंतनाग जिले के कश्मीरी पंडित परिवार से ताल्लुक रखती थीं और श्रीनगर के सौरा स्थित शेर-ए-कश्मीर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसकेआईएमएस) में नर्स के पद पर कार्यरत थीं। 18 अप्रैल 1990 की रात उनका एसकेआईएमएस हॉस्टल से अपहरण हुआ था और अगले दिन 19 अप्रैल को श्रीनगर के मालबाग क्षेत्र में सड़क किनारे उनका गोलियों से छलनी शव बरामद हुआ। इस हत्या ने उस दौर में पूरी घाटी को दहला दिया था।
निगीन थाने में दर्ज एफआईआर संख्या 56/1990 के तहत इस घटना की जांच शुरू हुई थी। आरोप है कि सरला भट्ट की हत्या घाटी से कश्मीरी पंडितों को व्यवस्थित तरीके से खदेड़ने की एक व्यापक साजिश का हिस्सा थी। उस समय कश्मीरी पंडित समुदाय को ‘भारतीय खुफिया एजेंसियों का एजेंट’ कहकर निशाना बनाया जा रहा था, जिसके चलते भय और प्रशासनिक असमर्थता के कारण हजारों पंडित परिवार अपने घर-बार छोड़कर जम्मू, दिल्ली और देश के अन्य हिस्सों में शरण लेने पर मजबूर हुए।
पलायन के बाद कश्मीरी पंडितों ने भीषण गर्मी और कठिन परिस्थितियों में टेंटों में शरण ली। उनकी संपत्तियों को लूटा गया, जलाया गया या उन पर जबरन कब्जा कर लिया गया। तीन दशक से अधिक समय बीत जाने के बाद भी बड़ी संख्या में पंडित परिवार शरणार्थी की तरह जीवन जी रहे हैं।
हाल के वर्षों में स्थिति में आंशिक सुधार के बाद जम्मू-कश्मीर सरकार ने उनकी संपत्तियां वापस दिलाने और पुनर्वास के लिए एक महत्वाकांक्षी योजना शुरू की है, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि आर्थिक रूप से सक्षम कुछ परिवारों को छोड़कर अधिकांश पंडित आज भी अपनी मातृभूमि लौटने की स्थिति में नहीं हैं।
इस मामले में एसआईए की यह ताजा कार्यवाई संकेत देती है कि तीन दशक पुराने इस हत्याकांड को अंजाम देने वालों को न्याय के कटघरे में लाने की कोशिश अब तेज हो गई है।