हिंसा नहीं बहुलता को बढ़ावा देता है हिंदू समाज : प्रो. राकेश सिन्हा
- Post By Admin on Jan 24 2023

बेगूसराय : राष्ट्रवादी विचारक और राज्यसभा सदस्य प्रो. राकेश सिन्हा ने कहा है कि हिन्दू समाज ने हमेशा बहुलता और प्रयोग धर्मिता को बढ़ावा दिया है। जबकि बाहर से आयातित होने वाले धर्म ने हमेशा हिंसा और टकराव की है। जिनको बागेश्वर धाम पर संदेह है, वह वहां जाकर परीक्षा करें, घर बैठकर बातें नहीं करें। प्रो. सिन्हा ने कहा कि दुनिया में दो प्रकार के धर्म और संप्रदाय की पद्धति बनी। भारत यानी हिंदू समाज बहुधर्मिता और प्रयोग धर्मिता को बढ़ाता है। भारत धर्म, संप्रदाय, भाषा, संस्कृति और किसी भी आध्यात्मिक यात्रा में एकरूपता को नहीं मानता है, एकरूपता की जगह बहुलता को बढ़ावा देता है। इससे नए-नए संप्रदाय का जन्म होना, नए विचारों का आना, नए दार्शनिकों के निरंतर आने की प्रक्रिया भारत में रही है।इसके समानांतर दुनिया में कोई ऐसी सभ्यता नहीं है, जहां प्रयोग धर्मिता को बढ़ाया गया हो। वहां तो एकरुपता पर जोर दिया जाता है। जब एकरूपता के इतर कोई धर्म, संप्रदाय या दार्शनिक का जन्म होता है, विज्ञान की कोई नई बात आती है तो वहां हिंसात्मक टकराव होता है। सुकरात को फांसी देने की सजा से लेकर इस्लाम के बीच यही होता रहा। इसलिए शिया-सुन्नी के बीच खूनी संघर्ष हुआ। भारत में अनेक प्रकार के धर्म-संप्रदाय आए, आधुनिक युग में आर्य समाज आया, जिसने मूर्ति पूजा का विरोध किया।
स्वामी दयानंद सरस्वती ने काशी में जाकर मूर्ति पूजकों के बीच विमर्श किया। वहां के राजा की अध्यक्षता में 17 नवम्बर 1869 को आयोजित कार्यक्रम में 50 हजार की भीड़ जुटी थी, लेकिन कोई हिंसात्मक बात नहीं हुई, कोई कटुता नहीं आई। इसी कारण से इस बहुधर्मिता और प्रयोग धर्मिता पर लगातार हमला उन धर्मों के द्वारा किया गया जो बाहर से आयातित होकर आए। उन्होंने हमारी कमजोरियों के कारण, जाति में बंट जाने के कारण, अश्पृश्यता के कारण, सामंतवाद के कारण भारत में आकर जगह बनाया और आज भी फैल रहे हैं। ऐसे लोगों के कारण गजनी और बाबर ने हमारे आस्था के केंद्रों को तोड़ा। उनको लगता है कि आस्था के केंद्रों को तोड़कर हिंदू समाज को समाप्त किया जा सकता है, आज भी वह प्रक्रिया जारी है। जब कोई पूजा पद्धति की बात आती है तो जहां एक समाज बहुसंख्यक रहता है, वह समाज दूसरे समाज को यानि हिंदू समाज को परेशान करता है। पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु समेत देश के कई भागों में यह दिखाई पड़ता है। हिंदुओं को अतातायी का सामना करना पड़ रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में पीएफआई पर कार्रवाई करना इस बात का घोतक है कि हम बहुधर्मिता को बनाए रखें।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि हमें कटुता नहीं फैलाना है, सहिष्णुता को स्थापित करना है। जो लोग 1947 से पहले कटुता को लेकर चलते थे, जिनके कारण देश में विभाजन हुआ वे उस धारा से अलग होकर देश की जो हमारी संस्कृति है, जो विरासत है, उसमें मिलजुलकर आपस में समन्वय रखकर चलें। यही कारण है कि इस्लाम और ईसाई का भारतीय करण की बात पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने कही थी।
उन्होंने कहा कि बागेश्वर धाम के संत धीरेन्द्र शास्त्री को लेकर तरह-तरह की बातें की जा रही है। जिनको बागेश्वर धाम पर संदेह है, वह वहां जाएं, उनसे वार्तालाप करें, उनकी बातों को सुनें और परीक्षा कर लें। घर में बैठकर उनके चमत्कार के दावा को, आध्यात्मिक ताकत के दावा को खारिज करने से पहले उनकी परीक्षा करें। बागेश्वर धाम देश के भीतर है, कोई परलोक से बात नहीं कर रहे हैं, परलोक में बैठकर दावा नहीं कर रहे हैं, उनसे बात करें। राकेश सिन्हा ने कहा कि भारत में सिद्धि की बड़ी परंपरा रही है, हम किसी के दावा को ऐसे ही खारिज नहीं कर सकते हैं कि उन्हें सिद्धि प्राप्त नहीं है। जो कहते हैं कि सिद्धि प्राप्त नहीं है, उनका बागेश्वर धाम में स्वागत है। जाएं, बात करें, संवाद करें, जो मन में आशंका है उसे व्यक्त करें, फिर दुनिया को बताएं कि बागेश्वर धाम से रूबरू होकर उन्हें क्या महसूस होता है।