आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री सधे काव्य शिल्पी और सिद्ध साहित्य साधक थे - डॉ. पंकज

  • Post By Admin on Jun 07 2018
आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री सधे काव्य शिल्पी और सिद्ध साहित्य साधक थे - डॉ. पंकज

मुजफ्फरपुर: प्रेम और सौंदर्य के बड़े कवि आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री की आध्यात्मिक चेतना पराकाष्ठा पर पहुँची हुई थी ।मानवेतर प्राणियों के साथ उनका व्यवहार योगी की तरह था ।मनुष्य की जययात्रा के गायक आचार्यश्री में स्वाभाविक रूप से मानवीय दुर्बलताएं भी थी ।वे मनुष्य के दुर्भाव पर दुखी होते रहे ।इसीलिए उनके गीतों में निराशा,उदासी और पीड़ा के भी स्वर मिलते हैं ।सबके बावजूद शास्त्री जी दुख को सुमुख बनाते जीवन - राग गाते रहे ।'--ये बातें बेला पत्रिका की ओर से निराला निकेतन में आयोजित महावाणी स्मरण में डॉ संजय पंकज ने कही ।
शास्त्रीजी की गीत - पंक्तियों को प्रस्तुत करते हुए डॉ पंकज ने आगे कहा कि - 'आचार्यश्री सधे काव्य शिल्पी और सिद्ध साहित्य साधक थे । उनकी साधना की उपलब्धियों से यह शहर और प्रांत ही नहीं ;हिन्दी भाषा और साहित्य के साथ ही भारत गौरवान्वित हुआ है । निराला निकेतन काव्य और कला संस्कृति का तपोवन है,इसे सुरक्षित रखने का नैतिक दायित्व साहित्यकारों,संस्कृतिकर्मियों और यहाँ के नागरिकों का है । जीवन राग के अप्रतिम महाकवि की श्रेष्ठता उनके अविराम सृजन में निहित है ।

डॉ. इन्दु सिन्हा ने कहा कि शास्त्री जी की महानता उनके मानवीय मूल्य और संवेदना में आकार लेती है ।हत्य- पद्य दोनों में निपुण आचार्य उच्च कोटि के विद्वान थे । वे जीवन भर रचते रहे और विश्वास के गीत गाते रहे । जानकीवल्लभ शास्त्री के आत्म संघर्ष के गीत 'दुख यदि इतने दिए,दो शक्ति मेरा मन न हारे 'के पाठ के बाद कवयित्री डॉ इन्दु सिन्हा ने 'चलो हम रोपे पेड़ 'गीत सुनाया तो ये पंक्तियाँ --सूरज है फेंक रहा अग्निवाण आँखों से /जिन्दगी मरण का यह प्रषन चिह्न लाई है '-गर्मी की मार्मिक अनुभूति करा गई ।

गीतकार डॉ. रंजीत पटेल के नवगीत --आ गए दिन उदासी के,चिंता से घिरे हुए --ने वर्तमान कठिन समय को उजागर कर दिया ।

युवा कवि अभिषेक अंजुम ने  समय की विसंगति को कविता में ऐसे चित्रित किया --'दिल के गहरे भूतल में,जीवन अंधियारा सोता है /जाने क्या कल होना था,जाने क्या अब होता है '।

नागेन्द्र नाथ ओझा ने --सुनो सुनो देश के भक्तों,समय की बोली को '
तो देवेन्द्र कुमार ने -'आएगा अपना प्यारा वसंत,तो गदराएगी मंजरियां 'सुनाकर सबको उद्बोधित किया ।
अंजनी पाठक के गीत -कैसे कैसे मिल जाते हैं,दुखड़ा अपना कह जाते हैं '-ने सबको भावुक कर दिया ।
अध्यक्षीय काव्य पाठ करते हुए निर्माल्य के महाकवि ठाकुर विनय कुमार शर्मा ने जब सुनाया --रहा जिस भी शहर में बेगाना हो न पाया /हाँ सबों के साज का मैं तराना हो न पाया '-तो देर तक दाद गूँजती रही ।
डॉ अंजना वर्मा ने -ये वे ही घर हैं न,जहाँ रहती थी छोटी छोटी लड़कियाँ --सुनाकर सबको अभिभूत कर दिया ।
संजय पंकज के दोहे देर तक झकझोरते रहे,विशेष रूप से यह दोहा -गड़े रहे जो पंक में,आज धुले हैं दूध /नकटा गंध बखानता,लंगड़ा लंबी कूद ।'-प्रभावशाली रहा ।

काव्य पाठ करने वालों में रामवृक्ष चकपुरी,नंदकुमार आदित्य,हुसैन सलीम,रंजीत कुमार,दीनबंधु आजाद,हरिनारायण गुप्ता ,डॉ शैल केजड़ीवाल ,ललन कुमार प्रमुख रहे ।आभार एच एल गुप्ता ने तथा धन्यवाद जयमंगल मिश्र ने व्यक्त किया ।पूर्व विधायक केदार प्रसाद गुप्ता ने भी विचार व्यक्त किया ।