बिहार में प्रचलित पारंपरिक लोककला है सुजनी
- Post By Admin on Jun 27 2024

मुजफ्फरपुर : बिहार की पारंपरिक और समृद्ध लोककलाओं में से एक, सुजनी कला न केवल राज्य की ग्रामीण संस्कृति का प्रतीक है, बल्कि इसकी अनोखी शिल्पकारी भी खासी पहचान रखती है। यह कला बिहार के ग्रामीण इलाकों में पीढ़ियों से चली आ रही है और इसे मुख्यतः ग्रामीण महिलाएं संरक्षित करती हैं।
सुजनी कला मुख्यत घरेलू उपयोग के लिए बनाए जाने वाले सौंदर्यपूर्ण वस्त्रों और सामानों की रचना में प्रयोग होती है। इस कला को बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं ने सहेजा और विकसित किया है, जिससे यह उनकी सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गई है। मुजफ्फरपुर के बाल भवन किलकारी में भी इस कला को जीवंत बनाए रखने का प्रयास जारी है।
यहां की विशाखा कुमारी और कृति कुमारी जैसी बालिकाएं इस कला को खेल-खेल में सीख रही हैं। विशाखा, मुकेश कुमार और निर्मला देवी की सुपुत्री हैं, जो छाता बाजार चौक गरीबस्थान की निवासी हैं। वहीं कृति जुलियस और रिंकी पटेल की सुपुत्री हैं, जो पुरानी गुदरी की निवासी हैं। वे सुजनी आर्ट के साथ-साथ कलरफुल पेपरवेट, पेपर क्राफ्ट, वेस्ट मटेरियल से क्राफ्ट डेकोरेटिव आइटम, रुमाल, टोपी, टी-शर्ट, साड़ी, थैला, और चादर पर सुजनी कला उकेरने जैसी विधाओं में निपुण हो रही हैं।
इन बालिकाओं को किलकारी के आर्ट एंड क्राफ्ट प्रशिक्षक राजीव कुमार द्वारा प्रशिक्षित किया जा रहा है। प्रमंडल कार्यक्रम समन्वयक पूनम कुमारी बताती हैं कि "किलकारी में बच्चों के बीच रचनात्मक कला और शिल्प कार्यों को प्रोत्साहित करने के लिए नियमित रूप से विशेषज्ञों द्वारा प्रशिक्षण और प्रदर्शनी का आयोजन किया जाता है।"
कठपुतली कला प्रशिक्षक सुनील सरला ने कहा, "किसी भी समाज का विकास वहां की संस्कृति से ही होता है, और संस्कृति का विकास लोक संस्कृति से। हमें अपनी लोक संस्कृति को समझने और संजोने की जरूरत है। सुजनी कला हमारी धरोहर है, जिसे हमारे पूर्वजों ने संरक्षित किया है। आज की युवा पीढ़ी इस धरोहर को सहेजने का कार्य कर रही है, जो गर्व की बात है।"
इस प्रकार, बाल भवन किलकारी में पारंपरिक सुजनी कला को जीवंत रखने का यह प्रयास न केवल बच्चों की रचनात्मकता को प्रोत्साहित करता है, बल्कि बिहार की सांस्कृतिक धरोहर को भी संरक्षित करता है।