बज्जीकांचल की लोकनायिका सरला श्रीवास
- Post By Admin on Aug 31 2024

मुजफ्फरपुर : शनिवार को मालीघाट, मुजफ्फरपुर में सरला श्रीवास जयंती पखवाड़ा के समापन के अवसर पर सरला श्रीवास सामाजिक सांस्कृतिक शोध संस्थान के संयोजक और प्रसिद्ध कठपुतली कलाकार सुनील सरला ने महान लोककलाकार सरला श्रीवास की जीवन यात्रा और योगदान पर प्रकाश डाला। सरला श्रीवास, जिन्हें बज्जीकांचल की लोकनायिका के रूप में भी जाना जाता है, का जन्म मध्यप्रदेश के चीचगांव में नाई परिवार में हुआ था। उनका बचपन राम्हेपुर, बैहर तहसील, जिला बालाघाट में बीता।
युवा अवस्था में ही सरला श्रीवास ने देश के प्रसिद्ध संगठन, एकता परिषद, से जुड़कर जल, जंगल, और जमीन के हक व अधिकार के लिए ग्रामीण और आदिवासी समुदायों को संगठित करने का कार्य शुरू किया। उन्होंने सूचना क्रांति के प्रचार-प्रसार के साथ आदिवासी अंचलों का भ्रमण किया और वहां की समस्याओं और संस्कृति को सीजी नेट स्वर के माध्यम से देश-विदेश में फैलाया।
सरला श्रीवास को "देहाती बुल्टू रेडियो" की संस्थापिका के रूप में भी पहचान मिली, जिसने उन्हें देशभर में प्रसिद्धि दिलाई। कठपुतली, मांदर, डमरू, झाल, करताल, नुक्कड़ नाटक, नृत्य, और अभिनय के माध्यम से उन्होंने वैकल्पिक मीडिया के महत्व को समझाने और समाज में जागरूकता फैलाने का कार्य किया।
सरला श्रीवास ने मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, झारखंड, महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, गुजरात, बिहार सहित देश के कई राज्यों में भ्रमण कर शांति, अहिंसा और नक्सल हिंसा को समाप्त करने के उद्देश्य से काम किया। मीडिया के लोकतांत्रिकरण की दिशा में उनके योगदान के लिए उन्हें एक सामाजिक योद्धा, स्त्री रत्न, लोक नायिका, जननायिका, सांस्कृतिक दूत और कठपुतली कलाकार के रूप में सम्मानित किया गया।
आज, सरला श्रीवास का नाम न केवल बज्जीकांचल बल्कि पूरे देश में एक प्रेरणा स्रोत के रूप में याद किया जाता है, जिन्होंने कला और सामाजिक जागरूकता के माध्यम से समाज को बदलने की दिशा में अनवरत कार्य किया।