संस्कृति का सूर्यपिंड हैं महर्षि दयानंद सरस्वती : डॉ.सुधांशु कुमार

  • Post By Admin on Feb 12 2018
संस्कृति का सूर्यपिंड हैं महर्षि दयानंद सरस्वती : डॉ.सुधांशु कुमार

सिमुलतला ,जमुई: कुमारी नीतू

तत्कालीन भारतीय राजनीति व संस्कृति की अनन्य परिघटना थे स्वामी दयानंद सरस्वती ! वह एक महान विचारक होने के साथ – साथ संस्कृति उद्धारक भी थे । उनमें भारत -माता के प्रति भक्ति ऐसी थी , कि उन्हें गुलामी की जंजीरों से मुक्त करने के लिए गांव – गांव , शहर – शहर जनजागरण का बिगुल फूंकते रहे , अलख जगाते रहे और एक ऐसा सूर्यपिंड बनकर उभरे , जिनसे नाना साहब , अजीमुल्ला खाँ , तात्या टोपे , बाबू कुँवर सिंह जैसे दर्जनों क्रांतिकारियों ने उनसे ऊर्जा व मार्ग दर्शन ग्रहण कर , अंग्रेजों को मार भगाने का संकल्प लिया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में निर्णायक भूमिका निभाई । उनका पराक्रम ऐसा था , कि सांस्कृतिक पुनरुद्धार के क्रम में काशी के पाखंडी पंडितों की खबर लेते समय उनके कई गुंडों के दाँत एक साथ खट्टे कर दिये और दयालुता ऐसी , कि दूध में कांच और संखिया मिलाकर जान मारने वाले रसोइया जगन्नाथ को भी माफ कर दिया ! ऐसी दया , करुणा और प्रेम की प्रतिमूर्ति , संस्कृति के पुनरुद्धारक महर्षि दयानंद सरस्वती ही हो सकते थे । उक्त बातें महाकवि रामइकबाल सिंह राकेश साहित्य परिषद के संयोजक डा. सुधांशु कुमार ने सोमवार को महर्षि दयानंद सरस्वती की जयंती समारोह के अवसर पर सिमुलतला आवासीय विद्यालय में छात्र छात्राओं को संबोधित करते हुए कही । उन्होंने बताया कि जब संपूर्ण विश्व को अपने ज्ञान के आलोक से आलोकित करनेवाले विश्वगुरु भारत भूमि पर पाप , पाखंड , अनाचार , अशिक्षा , व्यभिचार का अंधकार गहराने लगा तभी , उसका सीना चीरता हुआ प्राची में जो सूर्य उदित हुआ , वह महर्षि दयानंद सरस्वती ही थे ! अपने अध्यक्षीय संबोधन में प्राचार्य डा. राजीव रंजन ने कहा कि राम , कृष्ण और बुद्ध के बाद वह दयानंद ही थे जिन्होंने ‘दधीचि’ की तरह भारत माता को आतताइयों के चंगुल से मुक्त करने हेतू अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया ।परिषद के समन्वयक गोपाल शरण शर्मा ने कहा कि वह मात्र संस्कृति के पुनरुद्धारक ही नहीं थे अपितु स्वतंत्रता आंदोलन के प्रस्थान बिंदु भी थे।’स्वराज’ का नारा सर्वप्रथम उन्होंने ही दिया जिसे आगे चलकर बालगंगाधर तिलक ने प्रबलता के साथ उसे स्वर दिया । गणितज्ञ्य जितेंद्र कुमार मिश्रा ने स्वामी दयानंद सरस्वती के ‘सत्यार्थ प्रकाश’ को भारतीय सनातन संस्कृति का महाभाष्य कहा और उनको भारतीय संस्कृति का पुनरुद्धारक और पाखंडियों के पाखंड को चूर चूर करने वाला पहला योद्धा कहा । गणित शिक्षक रंजय कुमार ने कहा कि महर्षि दयानंद सरस्वती के अंग्रेजों के खिलाफ जनजागरण का ही फल था कि संपूर्ण भारत ने प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया । यही कारण है कि भूतपूर्व कांग्रेस अध्यक्ष पट्टाभि सीतारमैया ने उन्हें ‘राष्ट्र पितामह’ बताया।

कार्यक्रम के दूसरे सत्र श्रुतिलेख प्रतियोगिता आयोजित की गई जिसमें सफल छात्र छात्राओं को शिक्षकों ने लेखनी देकर पुरस्कृत किया। पुरस्कृत होने वाले छात्रों में तनुप्रिया ,राजरंजन ,दानिश , नीतीश आदि थे । कार्यक्रम में , पराग कुमार सिन्हा , प्रवीण कुमार सिन्हा ,सुनीता कुमारी ,बेबी कुमारी , प्रशांत राजहंस ,प्रज्ञेश वाजपेयी , शशिकांत मिश्रा , सुप्रियता कुमारी , गोपाल ठाकुर , विकास कुमार , पिंटू चौधरी , राजीव रंजन , नवीन कुमार आदि मौजूद थे । स्वागत संबोधन जितेंद्र कुमार पाठक एवं धन्यवाद ज्ञापन प्रेमनाथ सिंह ने दिया ।