मुजफ्फरपुर के बदनाम गलियों की बदनाम कहानी, माँ के बाद बेटियां भी कर रही जिस्म का धंधा

  • Post By Admin on Jul 04 2023
मुजफ्फरपुर के बदनाम गलियों की बदनाम कहानी, माँ के बाद बेटियां भी कर रही जिस्म का धंधा
  • विवादों से घिरी गलियों की कहानीगलियों में नृत्यांगना, सांझ ढलते ही धूमअनोखे इलाके की दास्तांगूंजते महफिलों के दरमियान छुपा रहस्यरेडलाइट इलाके की भविष्यवाणी: नजरअंदाज की दुनियामान-सम्मान की कई कहानियां: इलाके के लोगों के दर्दभरे अन्दर की दास्तां

 यह कहानी है चतुर्भुज स्थान से रेडलाइट इलाके तक, जहां शहर की एक अलग ही दुनिया बसती है। इस उल्लेखनीय स्थल को लेकर कुछ अद्भुत बातें हैं। इस इलाके को लोग बदनाम कर रहे हैं। यहां बसती हुई कुछ नर्तकियाँ जो अपनी पहचान बना चुकी हैं। यहाँ शाम ढलते ही महफिलें सजने लगती हैं और घुंघरू की ध्वनि से पूरा इलाका कांपने लगता है। कई सफेदपोश लोग भी इन महफिलों में अपनी खुशियों को बढ़ाने आते हैं। यह जगह पिछले कई सालों से "चतुर्भुज स्थान" या "रेडलाइट इलाका" के नाम से मशहूर है। हालांकि, इस इलाके में कई ऐसे मकान भी हैं जिनमें बिना परवाह किए अनुमति के अलावा कोई प्रवेश नहीं है। इसका कारण है कि यहां कई संशयपूर्ण परिवार रहते हैं। इस इलाके से गुजरते हुए लोग हर घर और इस इलाके के लोगों को शक की नजर से देखते हैं। कभी-कभी नर्तकियों के आगमन के समय लोग दूसरों के दरवाजे की खिड़की भी खटखटाने लगते हैं। इसलिए कुछ लोगों ने अपने घरों पर एक संकेत रखा है - "फैमिली डेरा है, अनुमति के बिना अंदर न आएं या फिर आने से पहले पूछें.."।

मदरसा बीबी सोगरा के सचिव तनवीर आलम, सामाजिक कार्यकर्ता पाले खा समेत कई अन्य लोग यह कहते हैं कि इस मोहल्ले में रहने वाले अच्छे लोगों को भी शक की नजर से देखा जाता है। पुलिस की छापेमारी के दौरान वहां पहुंचने वाले लोगों में उनका कोई संबंध नहीं होता है। इससे बचने के लिए यहां कुछ बोर्ड लगाए गए हैं।

यहां कुछ दर्दनाक तथ्य भी हैं:

अच्छे परिवारों का कहना है कि लोग उन्हें केवल "रेडलाइट इलाके" के निवासियों के रूप में मानते हैं। कुछ ऐसे लोग भी हैं जो पहले बाहर रहते थे और अपने मकानों को नर्तकियों को किराए पर दे रखा था। उनके पुराने "ग्राहक" कभी-कभी वहां पहुंचकर विवाद करने लगते हैं। अद्यतन के बावजूद, कुछ लोगों के घरों में अभी भी देह व्यापार होता है, जिसमें पुलिस स्वयं हस्तक्षेप करती है। छापेमारी के समय पुलिस अक्सर पास के मकानों में भी पहुंचती है। इससे वहां रहने वाले संबंधित परिवारों को अनावश्यक परेशानी होती है। वार्ड पार्षद के मुताबिक, "माहौल में काफी परिवर्तन हुआ है। कई पेशेवर लोग अब इज्जत के साथ अपनी जिंदगी जी रहे हैं। हालांकि, कुछ लोगों द्वारा वहां रहने वालों को कभी-कभी परेशानियों का सामना करना पड़ता है, जो उनसे किसी प्रकार का संबंध नहीं होता है। इसलिए हमने ऐसे बोर्ड लगाने का प्रयास किया है।" 

विविध देशों में वेश्यावृत्ति या जिस्मफरोशी को लेकर अलग-अलग कानून हैं। भारत में इस क्षेत्र में कड़ा कानून है, लेकिन यहां भी चोरी-छिपे वेश्यावृत्ति की घटनाएं देखी जाती हैं। इसी तरह एक स्थान है बिहार में जहां यह व्यापार पारिवारिक रूप से चलता है, जिसका अर्थ है कि माँ के बाद बेटी को भी अपने शरीर का व्यापार करना पड़ता है।

बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के 'चतुर्भुज स्थान' नामक इलाके में स्थित वेश्यालय का इतिहास मुग़लकालीन है। यह जगह भारत-नेपाल सीमा के करीब स्थित है और यहां की आबादी लगभग 10 हजार है। पहले इस इलाके में ढोलक, घुंघरु, और हारमोनियम की ध्वनि की पहचान हुआ करती थी। इसे कला, संगीत, और नृत्य का केंद्र माना जाता था, लेकिन अब यहां की हालत अब काफी बदल गई है इस जगह पर केवल जिस्म का व्यापार होता है। इस इलाके में वेश्यावृत्ति को पारिवारिक और परंपरागत पेशा माना जाता है। यहाँ मां के बाद बेटी को इस काम में जुटनी पड़ती है। हालाँकि शराब बंदी के बाद से इस जगह की रौनक कुछ फीकी पड़ गई है। लेकिन अब भी यह बदनाम गली के नाम से ही शुमार है यहाँ आज भी शाम के वक्त जिस्म की दुकाने व महफ़िलें सजती है। कुछ पुलिस से छुपा कर तो कुछ पुलिस को मिलाकर, लेकिन कमोबेश जिस्म का व्यापर यहाँ आज भी फल-फूल रहा है ।

तवायफ़ से प्रॉस्टीट्यूट बनना

इतिहास के एक पहलू पर नज़र डालें तो पन्नाबाई, भ्रमर, गौहरखान, और चंदाबाई जैसे कलाकार मुजफ्फरपुर के इस इलाके में आकर लोगों को नृत्य से मनोरंजन किया करते थे। लेकिन अब यहां मुज़रा बीते कल की बात हो गई है और नए गानों के साथ नृत्य करने वाली वेश्या अब प्रॉस्टीट्यूट बन गई है। यह आधुनिकता ने जीने और कला-प्रदर्शन के तरीकों को बदल दिया है। इस इलाके में कला की जगह कला अब वस्तु बन गई है। जिसे जिस्म के रूप में पड़ोसा जाता है ।

यहां का रोचक इतिहास

इस जगह का इतिहास काफ़ी रोचक है। शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने यहीं पर सरस्वती से मुलाकात की थी, और यहां से लौटने के बाद ही उन्होंने 'देवदास' की रचना की थी। चतुर्भुज स्थान का नामकरण चतुर्भुज भगवान के मंदिर के कारण हुआ था, लेकिन इसकी पहचान वहां की गलियों के कारण होने लगी है, जो तंग, बंद और बदनाम हो गई हैं। रिपोर्ट के मुताबिक़, बिहार के 38 जिलों में 50 रेड लाइट एरियाज़ हैं, जहां दो लाख से अधिक आबादी बसती है। ऐसे में यहां पर वेश्यावृत्ति का धंधा बड़े पैमाने पर प्रचलित है।