लोक चेतना के नायक भिखारी ठाकुर के सम्मान में लोक संवाद

  • Post By Admin on Jul 10 2024
लोक चेतना के नायक भिखारी ठाकुर के सम्मान में लोक संवाद

मुजफ्फरपुर : मंगलवार को सरला श्रीवास सामाजिक सांस्कृतिक शोध संस्थान द्वारा मालीघाट में लोक चेतना के नायक भिखारी ठाकुर के पुण्यतिथि की पूर्व संध्या पर एक विशेष लोक संवाद का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्थान के संयोजक और प्रसिद्ध कठपुतली कलाकार सुनील सरला ने की।

अध्यक्षीय संबोधन में सुनील सरला ने कहा, "भिखारी ठाकुर लोक चेतना के नायक, विश्व भोजपुरी के शक्तिमान और बिदेसिया शैली के जनक थे। उन्हें भोजपुरी भाषा के विधापति और संस्कृति के राजदूत के रूप में जाना जाता है। उनकी लोकभाषा, संस्कृति और साहित्य के प्रति समर्पण ने उन्हें भोजपुरिया समाज के शेक्सपियर का दर्जा दिलाया है।"

चाइल्डसेफ के सचिव जयचंद्र कुमार ने बताया, "भिखारी ठाकुर ने नाटकों के माध्यम से दलित और नारी उत्पीड़न, सामाजिकता, पारिवारिक एकता, नशामुक्ति और अध्यात्म के विषयों को उठाया। उनकी नाट्यशैली 'बिदेसिया' ने भोजपुरी जगत में एक नई पहचान बनाई।"

संजीवनी संस्थान के नदीम खान ने बताया, "भिखारी ठाकुर न केवल भोजपुरी, बल्कि बंगला, मैथिली, हिन्दी और संस्कृत के भी पंडित थे। उनका सादा जीवन और उच्च विचार आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं।"

परफेक्ट सोल्यूशन सोसाइटी के सचिव अनिल कुमार ठाकुर ने कहा, "भिखारी ठाकुर ने अपने जीवनकाल में ही अपने बारे में लिख दिया था कि 'अबही नाम भईल बा थोड़ा, जब ही छूट जाई तन मोरा, तेकरा बाद नाम होई जहईन, पंडित कवि सज्जन जस गहईन।'"

कठपुतली कला केन्द्र की सचिव प्रीति कुमारी ने कहा, "भोजपुरी के महायोद्धा भिखारी ठाकुर ने अपनी रचनाओं से समाज की कुरीतियों से लड़ाई लड़ी। उनकी रचनाएँ आज भी प्रासंगिक हैं।"

विंध्यवासनी देवी लोक कला संस्कृति मंच की सचिव और लोक गायिका अनीता कुमारी ने कहा, "भिखारी ठाकुर ने नाच मंडली बनाकर अपनी विचारधारा को आम जन में फैलाया। उनके कारण भोजपुरी लोक साहित्य ने अंतरराष्ट्रीय पहचान बनाई।"

सरला श्रीवास युवा मंडल की अध्यक्ष सुमन कुमारी ने कहा, "भिखारी ठाकुर की नाट्य रचनाओं में नारी जाति के दुःख-दर्द का संवेदनशील चित्रण है। उनके 'बिदेसिया' नाटक ने विशेष रूप से लोगों का दिल जीता।"

सरला श्रीवास सामाजिक सांस्कृतिक शोध संस्थान की संरक्षक कांता देवी ने कहा, "भिखारी ठाकुर की लोकप्रियता इतनी थी कि उनके नाच मंडली के बिना शादियां टाल दी जाती थीं। यहां तक कि वर-वधु भी मंडप से निकलकर नाटक देखने चले जाते थे।"

इस अवसर पर कई गणमान्य लोग और संस्था के सदस्य मौजूद थे, जिन्होंने भिखारी ठाकुर के योगदान को याद करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।