कजरी तीज : शिव-पार्वती के पुनर्मिलन का पावन पर्व, अखंड सौभाग्य और दांपत्य सुख का प्रतीक
- Post By Admin on Aug 11 2025
 
                    
                    नई दिल्ली : 12 अगस्त को देशभर में आस्था और उत्साह के साथ कजरी तीज का पर्व मनाया जाएगा। भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को पड़ने वाला यह व्रत न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका पौराणिक और सांस्कृतिक इतिहास भी गहरी आध्यात्मिक भावनाओं से जुड़ा हुआ है।
हिंदू धर्म के प्रमुख ग्रंथों स्कंद पुराण और शिव महापुराण में वर्णित कथाओं के अनुसार, देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठिन तपस्या की थी। 108 जन्मों की इस तपस्या के बाद तृतीया तिथि के दिन भगवान शिव ने उन्हें अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया। तभी से यह दिन अखंड सौभाग्य, दांपत्य प्रेम और वैवाहिक सुख का प्रतीक माना जाता है।
यह व्रत विवाहित महिलाओं के लिए पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना का अवसर है, जबकि अविवाहित कन्याएं उत्तम वर प्राप्ति के लिए उपवास रखती हैं। इस दिन महिलाएं हरे रंग की साड़ी, हरी चूड़ियां, सिंदूर, बिंदी और मेहंदी से सोलह श्रृंगार करती हैं तथा रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य अर्पित कर सुखी वैवाहिक जीवन की प्रार्थना करती हैं।
कजरी तीज पर ‘नीमड़ी पूजन’ का विशेष महत्व है। प्राचीन मान्यता है कि नीम में देवी दुर्गा का वास होता है। महिलाएं नीम की डाली को देवी स्वरूप मानकर पूजन करती हैं और उस पर हल्दी, सिंदूर, चूड़ी, बिंदी और श्रृंगार की वस्तुएं अर्पित करती हैं। कई स्थानों पर नीम की पत्तियों के ऊपर मिट्टी की देवी प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जाती है। नीम की शीतलता और औषधीय गुण इसे तन-मन की शुद्धि का प्रतीक बनाते हैं।
पंचांग के अनुसार, कजरी तीज की तिथि 11 अगस्त को सुबह 10:33 बजे शुरू होगी और 12 अगस्त को सुबह 8:40 बजे समाप्त होगी। उदयातिथि के अनुसार व्रत और पूजा 12 अगस्त को ही संपन्न होंगे। इस अवसर पर मंदिरों और घरों में शिव-पार्वती की आराधना, भजन-कीर्तन और सामूहिक पूजन के कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे, जिनमें महिलाओं की विशेष भागीदारी रहेगी।
 
                             
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