कांटी विधानसभा में सियासी मुकाबला दिलचस्प, क्या राजद दोहराएगी इतिहास या जदयू बदल देगी समीकरण

  • Post By Admin on Nov 01 2025
कांटी विधानसभा में सियासी मुकाबला दिलचस्प, क्या राजद दोहराएगी इतिहास या जदयू बदल देगी समीकरण

मुजफ्फरपुर : जिले की कांटी विधानसभा सीट पर इस बार सियासी जंग दिलचस्प होती जा रही है। 2020 में राजद ने 15 साल बाद यहां वापसी की थी, लेकिन क्या इस बार पार्टी यह सीट बरकरार रख पाएगी या जदयू बाजी मार ले जाएगी — यही बड़ा सवाल है।

वैशाली लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली कांटी विधानसभा क्षेत्र राजनीतिक और औद्योगिक दोनों दृष्टियों से अहम मानी जाती है। 1951 में स्थापित इस सीट पर अब तक 17 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं। शुरुआती दौर में कांग्रेस का वर्चस्व रहा, जिसने 1952 से 1972 तक पांच बार जीत हासिल की।

इसके बाद राजनीतिक समीकरण लगातार बदलते रहे। समाजवादी एकता केंद्र, जनता दल, जनता दल (यू) और राजद — चारों ने दो-दो बार जीत दर्ज की है। वहीं, लोकतांत्रिक कांग्रेस, जनता पार्टी, लोजपा और एक निर्दलीय प्रत्याशी को भी एक-एक बार जनता का समर्थन मिला।

2020 में राजद के इसराइल मंसूरी ने जदयू के मोहम्मद जमाल को हराकर यह सीट जीती थी। वहीं, 2015 में निर्दलीय अशोक कुमार चौधरी ने जीत दर्ज की थी।

इस बार कांटी सीट पर 13 उम्मीदवार मैदान में हैं। जदयू ने पूर्व मंत्री अजीत कुमार को टिकट दिया है, जबकि राजद ने फिर से इसराइल मंसूरी पर भरोसा जताया है। जन सुराज पार्टी से सुदर्शन मिश्रा भी मुकाबले में हैं।

कांटी विधानसभा का जातीय समीकरण चुनावी परिणामों में अहम भूमिका निभाता है। यादव, कुर्मी, राजपूत और कोरी समुदायों के साथ-साथ भूमिहार, मुस्लिम और पासवान मतदाता यहां निर्णायक भूमिका निभाते हैं।

क्षेत्र की पहचान कांटी थर्मल पावर प्लांट और मां छिन्नमस्तिका मंदिर से भी जुड़ी है। लेकिन स्थानीय जनता की चिंताओं में पावर प्लांट से निकलने वाली राख और खराब सड़कों की समस्या अब भी प्रमुख मुद्दे बने हुए हैं।

मां छिन्नमस्तिका मंदिर सिद्ध पीठ के रूप में प्रसिद्ध है और शारदीय नवरात्र के दौरान यहां भव्य मेला लगता है। वहीं, मड़वन का राम जानकी मंदिर भी आस्था का प्रमुख केंद्र है।

कुल मिलाकर, कांटी विधानसभा सीट इस बार फिर से बिहार की राजनीति का केंद्र बिंदु बनी हुई है — जहां हर दल अपनी साख बचाने और जीत की रणनीति में जुटा है।