साहेबगंज विधानसभा : हर चुनाव में बदलते समीकरण, भाजपा के लिए साख बचाने की जंग
- Post By Admin on Nov 01 2025
मुजफ्फरपुर : बिहार की राजनीति में साहेबगंज विधानसभा सीट का अपना खास महत्व है। बाया नदी के किनारे बसा यह इलाका हर चुनाव में नए समीकरण गढ़ने और पुराने ढांचे को तोड़ने के लिए जाना जाता है। यहां मतदाताओं का रुझान लगातार बदलता रहा है, इसलिए किसी भी दल को इस सीट पर स्थायी बढ़त नहीं मिल पाई है।
1951 में गठित इस सीट पर अब तक 17 चुनाव हो चुके हैं। शुरुआती वर्षों में कांग्रेस का दबदबा रहा, जिसने सात बार जीत दर्ज की। 1985 के बाद सत्ता समीकरण बदले और जनता दल, जदयू व राजद ने दो-दो बार कब्जा जमाया। वहीं भाकपा, लोजपा, वीआईपी और एक निर्दलीय प्रत्याशी ने भी एक-एक बार जीत हासिल की।
2005 और 2010 में जदयू के राजू कुमार सिंह विजयी रहे, जबकि 2015 में जनता ने राजद के रामविचार राय को मौका दिया। 2020 में वीआईपी से लड़कर राजू कुमार सिंह ने फिर जीत दर्ज की, जिन्होंने बाद में भाजपा का दामन थाम लिया। इस बार भाजपा ने फिर उन्हीं पर भरोसा जताया है। राजद ने पृथ्वी नाथ राय को मैदान में उतारा है, जबकि जन सुराज ने ठाकुर हरि किशोर सिंह को प्रत्याशी बनाया है।
जातीय समीकरण की बात करें तो साहेबगंज में राजपूत, यादव, मुस्लिम और भूमिहार मतदाता प्रमुख भूमिका निभाते हैं। इसके अलावा वैश्य, निषाद और अन्य पिछड़ी जातियों का समर्थन भी परिणाम तय करने में निर्णायक साबित हो सकता है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस बार मुकाबला सीधा भाजपा और राजद के बीच रहेगा। जनता के रुझान के अनुसार यह तय होगा कि क्या भाजपा इस सीट पर अपने प्रभाव को कायम रख पाएगी या फिर साहेबगंज एक बार फिर बदलाव की ओर बढ़ेगा।