मुजफ्फरपुर विधानसभा में गरमाई सियासत: शाही लीची के शहर में भाजपा और कांग्रेस के बीच कड़ी टक्कर तय

  • Post By Admin on Nov 01 2025
मुजफ्फरपुर विधानसभा में गरमाई सियासत: शाही लीची के शहर में भाजपा और कांग्रेस के बीच कड़ी टक्कर तय

मुजफ्फरपुर : उत्तर बिहार की राजनीतिक राजधानी कहे जाने वाले मुजफ्फरपुर में इस बार विधानसभा चुनाव का माहौल खासा रोचक होता जा रहा है। शाही लीची के स्वाद जितनी ही मीठी और उतार-चढ़ाव भरी इस सीट का चुनावी इतिहास हमेशा अप्रत्याशित रहा है। यहां कभी कोई दल लंबे समय तक अपना वर्चस्व कायम नहीं रख सका।

1957 में अस्तित्व में आई इस विधानसभा सीट ने बिहार की राजनीति को कई दिग्गज नेता दिए। पहले ही चुनाव में महामाया प्रसाद ने कांग्रेस के दिग्गज नेता महेश बाबू को पराजित किया था और बाद में 1967 में बिहार के पहले गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने।

मुख्य रूप से शहरी क्षेत्र होने के कारण मुजफ्फरपुर विधानसभा सीट पर करीब 88 प्रतिशत शहरी मतदाता हैं, जो इसे उत्तर बिहार की व्यावसायिक राजधानी का दर्जा दिलाते हैं।

भाजपा के वरिष्ठ नेता सुरेश कुमार शर्मा पिछले 25 वर्षों से इस सीट पर लगातार अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। 2000 और 2005 में हारने के बाद उन्होंने 2010 और 2015 में लगातार दो बार जीत दर्ज की, लेकिन 2020 में कांग्रेस प्रत्याशी बिजेंद्र चौधरी ने उन्हें मात देकर भाजपा का किला ढहा दिया। यह कांग्रेस की इस सीट पर ऐतिहासिक छठी जीत थी।

इतिहास गवाह है कि मुजफ्फरपुर की जनता ने हमेशा जनभावना के आधार पर फैसला किया है। 1908 में खुदीराम बोस की गिरफ्तारी और 1977 में जेल में बंद समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडिस की प्रचंड जीत इस शहर की राजनीतिक चेतना का प्रमाण है। जॉर्ज फर्नांडिस ने यहां से पांच बार लोकसभा का प्रतिनिधित्व किया और मुजफ्फरपुर की पहचान राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित की।

इस बार भी मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा माना जा रहा है। भाजपा अपने खोए गढ़ को वापस पाने के लिए पूरी ताकत झोंक रही है, जबकि कांग्रेस अपनी पकड़ बरकरार रखने के लिए रणनीतिक रूप से मैदान में उतरी है।

विश्लेषकों के अनुसार, शहरी मुद्दे, युवाओं की भागीदारी और स्थानीय विकास इस बार के चुनावी एजेंडे का केंद्र होंगे। यानी मुजफ्फरपुर में इस बार की सियासत ‘शाही लीची’ जितनी ही खास और रोमांचक होने वाली है।