पारू विधानसभा : भाजपा के बागी अशोक बनाम एनडीए उम्मीदवार, मुकाबला दिलचस्प मोड़ पर

  • Post By Admin on Nov 01 2025
पारू विधानसभा : भाजपा के बागी अशोक बनाम एनडीए उम्मीदवार, मुकाबला दिलचस्प मोड़ पर

मुजफ्फरपुर : बिहार के मुजफ्फरपुर जिले की पारू विधानसभा सीट इस बार चुनावी दिलचस्पी का केंद्र बन गई है। भाजपा से चार बार लगातार विधायक रह चुके अशोक कुमार सिंह के बगावती तेवरों ने एनडीए खेमे में खलबली मचा दी है। पार्टी ने इस बार उनका टिकट काटकर सीट अपने सहयोगी राष्ट्रीय लोक मोर्चा (उपेंद्र कुशवाहा) के खाते में दे दी, जिसके बाद अशोक कुमार सिंह ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में उतरने का एलान कर दिया है।

पारू विधानसभा क्षेत्र, जो वैशाली लोकसभा सीट के अंतर्गत आता है, उत्तर बिहार की राजनीति में लंबे समय से भाजपा का मजबूत गढ़ रहा है। अशोक कुमार सिंह ने 2005, 2010, 2015 और 2020 के चुनावों में लगातार जीत हासिल कर इस क्षेत्र में अपना दबदबा कायम रखा था। 2020 में उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी शंकर प्रसाद को हराया था, जबकि कांग्रेस तीसरे स्थान पर रही थी।

इस बार मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है। भाजपा समर्थित एनडीए उम्मीदवार मदन चौधरी, राजद प्रत्याशी शंकर प्रसाद और भाजपा से नाराज़ निर्दलीय उम्मीदवार अशोक कुमार सिंह के बीच कांटे की टक्कर मानी जा रही है। वहीं, जन सुराज पार्टी ने रंजना कुमारी को मैदान में उतारकर मुकाबले को और दिलचस्प बना दिया है।

पारू के जातीय समीकरण भी चुनाव परिणाम को प्रभावित करते हैं। यहां भूमिहार, यादव और राजपूत मतदाताओं का दबदबा है। 1969 से अब तक इन्हीं जातियों के उम्मीदवारों ने इस सीट पर कब्जा जमाया है।

कृषि प्रधान यह इलाका धार्मिक रूप से भी समृद्ध है। बाबा फुलेश्वर नाथ महादेव मंदिर यहां का प्रमुख आस्था केंद्र है, जबकि स्थानीय हाट और कृषि व्यापार यहां की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं।

राजनीतिक इतिहास की बात करें तो 1957 में गठित इस विधानसभा क्षेत्र में अब तक 16 चुनाव हो चुके हैं। शुरुआती दौर में कांग्रेस का दबदबा था, जिसने पांच में से चार बार जीत दर्ज की, लेकिन 1972 के बाद यह सीट उसके हाथ से निकल गई। पिछले दो दशकों में भाजपा का वर्चस्व कायम रहा, जो अब 2025 के चुनाव में पहली बार बड़ी परीक्षा से गुजर रहा है।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि पारू में मुकाबला इस बार “चेहरा बनाम गठबंधन” के रूप में देखा जा रहा है। अगर अशोक कुमार सिंह ने अपने पारंपरिक वोट बैंक को साध लिया, तो भाजपा के लिए यह चुनावी गढ़ भी दरक सकता है।