गायघाट विधानसभा : बाढ़ और जातीय समीकरण बने चुनावी मुद्दा, विकास पर टकराएंगे दावे

  • Post By Admin on Nov 01 2025
गायघाट विधानसभा : बाढ़ और जातीय समीकरण बने चुनावी मुद्दा, विकास पर टकराएंगे दावे

मुजफ्फरपुर : बिहार विधानसभा चुनाव में मुजफ्फरपुर जिले की गायघाट सीट एक बार फिर सियासी दलों के लिए अहम रणभूमि बन गई है। यहां बाढ़, विकास और रोजगार जैसे स्थानीय मुद्दों के साथ-साथ जातीय समीकरण भी नतीजों की दिशा तय करेंगे। यह सीट सामान्य वर्ग की है और इसका गठन वर्ष 1967 में किया गया था।

गायघाट विधानसभा में गायघाट और बंदरा प्रखंडों के साथ-साथ कटरा प्रखंड की छह ग्राम पंचायतें शामिल हैं। यह पूरी तरह से ग्रामीण इलाका है, जहां की मिट्टी गंडक और बागमती नदियों की जलोढ़ उपज से उपजाऊ मानी जाती है। लेकिन हर साल आने वाली बाढ़ यहां की सबसे बड़ी समस्या बनी हुई है। खासकर बंदरा प्रखंड के कई गांव हर साल जलजमाव से तबाह होते हैं।

यह क्षेत्र मुजफ्फरपुर शहर से 35 किमी उत्तर में स्थित है और सड़क व रेल दोनों से अच्छी तरह जुड़ा है। गायघाट रेलवे स्टेशन समस्तीपुर–मुजफ्फरपुर रेलमार्ग पर स्थित है, जबकि सड़क मार्ग से यह दरभंगा (55 किमी) और सीतामढ़ी (60 किमी) से जुड़ा है।

यहां की अर्थव्यवस्था कृषि प्रधान है। स्थानीय किसान धान, गेहूं, मक्का और दाल की खेती करते हैं। छोटे स्तर पर चलने वाले चावल मिल और कृषि व्यापार केंद्र ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सहारा देते हैं। हालांकि, रोजगार के सीमित अवसरों के चलते युवाओं का पलायन लगातार बढ़ रहा है।

राजनीतिक इतिहास पर नजर डालें तो गायघाट सीट ने कई नेताओं को पहचान दी है। इनमें महेश्वर प्रसाद यादव का नाम सबसे प्रमुख है, जिन्होंने अलग-अलग दलों से जीत दर्ज की। 1990 में निर्दलीय, 1995 में जनता दल और 2005 व 2015 में राजद के टिकट पर उन्होंने जीत हासिल की। 2010 में भाजपा की वीणा देवी ने उन्हें हराया था, लेकिन 2015 में यादव ने वापसी की।
2020 के चुनाव में राजद के निरंजन राय ने जदयू के महेश्वर यादव को मात दी। उस चुनाव में लोजपा के उम्मीदवार के उतरने से वोटों का बंटवारा हुआ, जिससे राजद को सीधा फायदा मिला।

गायघाट में यादव, कुशवाहा, ब्राह्मण, भूमिहार, दलित और मुसहर समुदायों की निर्णायक भूमिका है। यादव-मुस्लिम वोटरों का झुकाव राजद की ओर है, जबकि सवर्ण समुदाय पारंपरिक रूप से भाजपा के साथ रहता है। वहीं, जदयू की पकड़ पिछड़े और दलित वर्गों में देखी जाती है।

मुद्दों की बात करें तो यहां के मतदाता बाढ़, सड़क, सिंचाई, स्वास्थ्य और रोजगार को लेकर लंबे समय से नाराज हैं। हर साल आने वाली बाढ़ खेती को चौपट करती है और ग्रामीण इलाकों का संपर्क कट जाता है। स्वास्थ्य केंद्रों में संसाधनों की कमी और शिक्षा के कमजोर स्तर ने विकास की रफ्तार को धीमा किया है।

2024 के चुनाव आयोग आंकड़ों के अनुसार, गायघाट की जनसंख्या 5.53 लाख और मतदाता संख्या 3.30 लाख है, जिनमें 1.73 लाख पुरुष, 1.56 लाख महिलाएं और 6 थर्ड जेंडर मतदाता शामिल हैं।

बदलते राजनीतिक माहौल और जातीय समीकरणों के बीच अब देखना यह दिलचस्प होगा कि गायघाट की जनता इस बार किसे मौका देती है — अनुभव को या परिवर्तन को।