बिहार में मुस्लिमों पर प्रशांत किशोर से लेकर तेजस्वी की नजर

  • Post By Admin on Oct 08 2024
बिहार में मुस्लिमों पर प्रशांत किशोर से लेकर तेजस्वी की नजर

पटना : 2025 बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी मुस्लिम और अतिपिछड़ा वर्ग पर राजनीति केंद्रित कर तैयारी कर रही है। इस बार राजद और एआईएमआईएम के बीच मुकाबला कड़ा है। मुस्लिम मतदाताओं के लिए जन सुराज ने आबादी के अनुसार टिकट वितरण की योजना बनाई है।

बिहार की राजनीति में मुस्लिम मतों का काफी महत्व रहा है। 16 प्रतिशत से लेकर 17 प्रतिशत तक जनसंख्या पहुंचने तक मुस्लिम मतों के दीवानों की कमी नहीं रही। आजादी के बाद मुस्लिम मतों को लेकर कई पार्टियां ने अपने हिसाब से प्रयोग दर प्रयोग किए, पर मुस्लिम मतों की सच्चाई यही है कि अधिकांश मत कांग्रेस के साथ जाता रहा है। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव का राजनीतिक जागृति मुस्लिम मतों के साथ यादव समीकरण के साथ हुई। लालू यादव ने इस 'एमवाई' समीकरण के सहारे सत्ता की चाभी 15 सालों तक अपने हाथ में रखी।

रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने जब राजनीति में उतरने का मन बनाया तो उनका निशाना भी मुस्लिम मत के साथ अतिपिछड़ा वोट पर था। इन दो खास मतों को प्रशांत किशोर अगर सत्ता की सीढ़ी बनाना चाहते थे तो इसकी वजह भी थी। हाल ही में राज्य सरकार ने जातीय जनगणना कराई तो जाति आधारित राजनीति करने वाले कई दलों की कलई भी खुल गई। इस जनगणना के बाद जो सच्चाई सामने आई, उसमें अति पिछड़ा वर्ग की आबादी 36.01 फीसदी, पिछड़े वर्ग की आबादी 27.12 प्रतिशत, SC-19.65 फीसदी, ST- 1.6 प्रतिशत और मुसहर की आबादी 3 फीसदी बताई गई है। वहीं मुस्लिम की आबादी 17.7 प्रतिशत थी।

प्रशांत किशोर पहले चुनावी रणनीतिकार रहे हैं। इसलिए जातीय जनगणना का उन्होंने पहले अध्ययन किया और सबसे पहले जिस वोट बैंक को टारगेट किया, वह रहा मुस्लिम और अतिपिछड़ा। यानी 17.7 और 36.1 प्रतिशत वोट की राजनीति। इसलिए उन्होंने अतिपिछड़ा और मुस्लिम मतों की घेराबंदी सबसे पहले की। मुस्लिम मतों की दीवानगी कुछ इस तरह से थी कि उन्होंने सर्वप्रथम यह घोषणा कर दी कि आगामी विधानसभा चुनाव 2025 में मुस्लिम और अतिपिछड़ा से 75/75 उम्मीदवार उतारेंगे। लेकिन जन सुराज यात्रा से कुछ जिलों का भ्रमण करने के बाद यह कहा कि आबादी के अनुसार यानी 17.7 प्रतिशत के अनुसार मुस्लिमों को टिकट देंगे। इस हिसाब से भी जन सुराज कम से कम मुस्लिमों से 42 उम्मीदवार के आस पास उतार सकती है।

जन सुराज के नायक प्रशांत किशोर ने जब आबादी के अनुसार मुस्लिमों को उम्मीदवार बनाने की बात की तो राजद को जनाधार खिसकता दिखा। तब एक रणनीति को लेकर राजद के तमाम नेता बस यही साबित करने लगे कि जन सुराज एक भाजपा प्रायोजित पार्टी है। राजद नेताओं ने पीके की जन सुराज को भाजपा की बी टीम भी कह डाला।

राजद के इस हमले का मतलब प्रशांत किशोर समझ चुके थे। राजद का ये हमला उनके ड्रीम मत यानी मुस्लिम को बरगलाने के लिए काफी था। रणनीतिकार रहे प्रशांत किशोर ने तब यह कह कर भाजपा की 'बी टीम' होने से इनकार किया कि राजद को अगर डर है कि मुस्लिम उम्मीदवार उतारकर वोट काटने की मंशा है तो मैं एक वादा करता हूं कि जहां राजद मुस्लिम उम्मीदवार देगा, जनसुराज वहां मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारेगा l

बिहार की राजनीत में मुस्लिम मतों के आकर्षण का केंद्र बदलता रहा है। पहले मुस्लिम कांग्रेस के वोट बैंक माने जाते थे। 90 के दशक में राजद सुप्रीमो लालू यादव मुस्लिम मतों के चितेरे बने। जनता दल यू के प्रति मुस्लिम मतों की सिंपैथी रही। पर भाजपा से गठबंधन के कारण जदयू मुस्लिमों की राजद भक्ति को नहीं के बराबर ही तोड़ सके। वह भी तब जब मुस्लिमों के लिए कई योजना लाकर उनके जीवन स्तर को ऊपर उठाने की कोशिश की पर जदयू जब महागठबंधन के साथ रहा तो मुस्लिम मत मिलता रहा।

राजद सुप्रीमो के बाद एक हद तक एआईएमआईएम का असर मुस्लिम मतों पर पड़ा। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (AIMIM) चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव में शिरकत की। तब उसके निशाने पर बिहार का सीमांचल रहा। वह इसलिए कि सीमांचल की कुल आबादी तकरीबन एक करोड़ है और इसमें मुसलमानों की आबादी 40 फीसदी है। अकेले किशनगंज में 69 फीसदी मुसलमान हैं। ओवैसी ने वर्ष 2015 के विधानसभा में सीमांचल की 6 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए, लेकिन एआईएमआईएम एक भी सीट जीत नहीं सकी।


असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के लिए वर्ष 2020 का विधानसभा चुनाव महत्वपूर्ण रहा। अब मुस्लिम विधायकों के जीतने में आंकड़े में दूसरे नंबर पर ओवैसी की पार्टी रही। पार्टी ने अमौर, कोचाधाम, जोकीहाट, बायसी और बहादुरगंज सीटों पर जीत हासिल कर राजद के एक छत्र अधिकार को चुनौती दे डाली।

पहली परीक्षा बिहार की 6 सीटों का उपचुनाव 
अब आगामी विधानसभा चुनाव 2025 में मुस्लिम मतों के तीन दीवाने यानी राजद, एआईएमआईएम और अब जन सुराज। देखना है कि कौन सा दल राजद के एकाधिकार को कितना खंडित कर पाता है। वैसे जन सुराज की नीतियों की सफलता की एक झलक तो चार विधानसभा में होने वाले उप चुनाव में ही दिख जाएगी। ऐसा इसलिए कि बेला, इमामगंज, तरारी और रामगढ़ विधान सभा में मुस्लिमों की संख्या अच्छी है।