आया राम गया राम बने रमित खट्टर, कुछ ही घंटों में कांग्रेस छोड़ फिर थामा भाजपा का हाथ

  • Post By Admin on Sep 20 2024
आया राम गया राम बने रमित खट्टर, कुछ ही घंटों में कांग्रेस छोड़ फिर थामा भाजपा का हाथ

हरियाणा : हरियाणा की राजनीति में गुरुवार का दिन अप्रत्याशित घटनाओं से भरा रहा। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के भतीजे रमित खट्टर ने दिन में कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की, लेकिन कुछ ही घंटों के भीतर भाजपा में वापस लौट आए। यह घटनाक्रम 'आया राम गया राम' की कहावत को सजीव करता नजर आया, जब रमित ने एक ही दिन में दो पार्टियों की सदस्यता ले ली।

दरअसल, रमित खट्टर ने दोपहर के समय रोहतक के कांग्रेस विधायक भारत भूषण बत्रा की उपस्थिति में कांग्रेस का दामन थामा था। इस निर्णय ने भाजपा में हलचल मचा दी, क्योंकि रमित खट्टर का कांग्रेस में शामिल होना भाजपा के लिए बड़ा झटका माना जा रहा था। लेकिन यह हलचल ज्यादा देर तक नहीं रही, क्योंकि शाम होते-होते रमित खट्टर ने भाजपा में फिर से वापसी कर ली। उनकी फिर से भाजपा में वापसी भाजपा के प्रत्याशी मनीष ग्रोवर की मौजूदगी में हुई, जो रोहतक विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं और उनका सीधा मुकाबला भारत भूषण बत्रा से है।

भाजपा में लौटने के बाद रमित खट्टर ने यह दावा किया कि वे कांग्रेस में गए ही नहीं थे। उन्होंने सफाई देते हुए कहा, "भारत भूषण बत्रा ने मेरे कंधे पर कांग्रेस का पटका रख दिया था और उसकी तस्वीरें ली गईं। मैं भाजपा के साथ था, हूं और रहूंगा।" रमित ने यह भी कहा कि कांग्रेस में उनके शामिल होने की खबरें गलत थीं और वह हमेशा से भाजपा और अपने चाचा, मनोहर लाल खट्टर के साथ रहे हैं। मंच पर, उन्होंने भाजपा प्रत्याशी मनीष ग्रोवर के पैर भी छुए।

सूत्रों की माने तो रमित खट्टर ने एक स्थानीय नेता के जरिए कांग्रेस के उम्मीदवार से संपर्क साधा था और कांग्रेस में शामिल हो गए थे। हालांकि, उनका कोई बड़ा राजनीतिक प्रभाव नहीं था, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री के भतीजे होने के कारण यह घटना सुर्खियों में आ गई। यही वजह रही कि भाजपा नेतृत्व ने उन्हें वापस लाने के लिए तत्परता दिखाई और जल्द ही उन्हें भाजपा में फिर से शामिल कर लिया गया।

यह घटनाक्रम हरियाणा के राजनीतिक इतिहास में 'आया राम गया राम' के किस्से को ताजा कर गया। 1967 में हसनपुर के विधायक गया लाल ने एक ही दिन में तीन बार पार्टी बदली थी। इसी वाकये से यह प्रसिद्ध मुहावरा जन्मा, जिसका इस्तेमाल अब दल-बदल की राजनीति के संदर्भ में किया जाता है। रमित खट्टर की यह तेज राजनीतिक करवट भी उसी ऐतिहासिक वाकये की याद दिलाती है।