ठाकरे बंधुओं की मुलाकात से गरमाई महाराष्ट्र की सियासत, छह साल बाद मातोश्री पहुंचे राज ठाकरे

  • Post By Admin on Jul 27 2025
ठाकरे बंधुओं की मुलाकात से गरमाई महाराष्ट्र की सियासत, छह साल बाद मातोश्री पहुंचे राज ठाकरे

मुंबई : महाराष्ट्र की राजनीति में रविवार को उस वक्त बड़ी हलचल मच गई, जब महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) प्रमुख राज ठाकरे ने करीब छह साल बाद अचानक 'मातोश्री' पहुंचकर अपने चचेरे भाई उद्धव ठाकरे से मुलाकात की। यह भेंट जहां एक ओर उद्धव ठाकरे के जन्मदिन की बधाई के बहाने हुई, वहीं दूसरी ओर राज्य की राजनीति में नई सियासी संभावनाओं की सुगबुगाहट को भी जन्म दे गई।

इस खास मौके पर उद्धव ठाकरे ने सभी पुराने मतभेदों को किनारे रखते हुए राज ठाकरे का बेहद गर्मजोशी से स्वागत किया। राजनीतिक हलकों में यह दृश्य बेहद चौंकाने वाला रहा, क्योंकि उद्धव खुद पहली बार 'मातोश्री' के मुख्य द्वार पर आकर राज को गले लगाने पहुंचे। दोनों के बीच लगभग 20 मिनट तक बातचीत चली और राज ठाकरे ने उन्हें एक सुंदर लाल गुलाब का गुलदस्ता भेंट किया।

अचानक लिया फैसला, खुद संजय राउत ने की अगवानी

जानकारी के मुताबिक, राज ठाकरे ने सुबह अचानक मनसे नेता बाला नंदगांवकर के फोन से शिवसेना (उद्धव गुट) के सांसद संजय राउत को कॉल कर कहा, "मैं उद्धवजी को जन्मदिन की बधाई देने मातोश्री आ रहा हूं।" यह सुनकर खुद संजय राउत गेट पर उनकी अगवानी के लिए पहुंचे। दादर के 'शिवतीर्थ' से बांद्रा तक राज ठाकरे के काफिले के पहुंचते ही मातोश्री के बाहर शिवसैनिकों में जबरदस्त उत्साह देखने को मिला। ‘जय महाराष्ट्र’ के नारों के बीच कार्यकर्ताओं ने उनका स्वागत किया।

क्या फिर एक होंगे ठाकरे बंधु?

यह मुलाकात यूं तो एक पारिवारिक शिष्टाचार का प्रतीक थी, लेकिन इसकी राजनीतिक गूंज दूर तक सुनाई दी। दोनों ठाकरे भाइयों के रिश्तों में लंबे समय से चली आ रही दूरी के बीच यह एक अहम मोड़ माना जा रहा है। गौरतलब है कि इससे पहले राज ठाकरे जनवरी 2019 में बेटे अमित ठाकरे की शादी का निमंत्रण देने 'मातोश्री' आए थे।

हाल ही में वर्ली में ‘मराठी विजय रैली’ के दौरान दोनों की मौजूदगी ने सियासी हलकों में गठबंधन की संभावनाएं जगा दी थीं, लेकिन उसके बाद बात ठंडी पड़ गई थी। अब छह साल बाद की यह मुलाकात एक बार फिर संकेत दे रही है कि आने वाले समय में महाराष्ट्र की राजनीति में ठाकरे बंधुओं का साथ आना कोई असंभव बात नहीं रह गई है।

राजनीतिक विश्लेषकों की नजरें अब इस पर टिकी हैं कि क्या यह मुलाकात सिर्फ एक औपचारिकता थी या आने वाले विधानसभा चुनावों से पहले कोई बड़ी रणनीतिक तैयारी का हिस्सा।