गाली बनी पावर बूस्टर : विज्ञान ने खोला चौंकाने वाला कनेक्शन

  • Post By Admin on Dec 21 2025
गाली बनी पावर बूस्टर : विज्ञान ने खोला चौंकाने वाला कनेक्शन

नई दिल्ली : अक्सर गाली देना बदतमीजी या गुस्से की अभिव्यक्ति माना जाता है, लेकिन अब विज्ञान इसे एक अलग नजरिए से देख रहा है। हालिया शोध में दावा किया गया है कि गाली देना न केवल भावनात्मक प्रतिक्रिया है, बल्कि यह शरीर की ताकत और हिम्मत को कुछ समय के लिए बढ़ा भी सकता है। यानी कठिन हालात में मुंह से निकली एक गाली शरीर के भीतर छुपी ऊर्जा को जगा सकती है।

इस शोध का नेतृत्व ब्रिटेन की कील यूनिवर्सिटी के मनोवैज्ञानिक डॉ. रिचर्ड स्टीफेंस ने किया। शोधकर्ताओं के अनुसार गाली देना दिमाग के लिए एक तरह का “न्यूरोलॉजिकल अलार्म” है, जो शरीर को तुरंत सतर्क कर देता है। डॉ. स्टीफेंस का कहना है कि यह एक ऐसा साधन है जो बिना दवा, बिना अतिरिक्त ऊर्जा खर्च किए प्रदर्शन को बेहतर बना सकता है। उन्होंने इसे “कैलोरी-न्यूट्रल और हर समय उपलब्ध” बताया।

अध्ययन के दौरान प्रतिभागियों से ठंडे पानी में हाथ डालकर दर्द सहने की क्षमता जांची गई, साथ ही साइकिल चलाने और पकड़ की ताकत जैसे परीक्षण भी कराए गए। नतीजे हैरान करने वाले रहे। जिन प्रतिभागियों को गाली देने की छूट दी गई, वे न सिर्फ ज्यादा देर तक दर्द सह पाए, बल्कि उनकी शारीरिक शक्ति में भी हल्की मगर स्पष्ट बढ़ोतरी दर्ज की गई।

वैज्ञानिकों का मानना है कि इसके पीछे शरीर की “फाइट या फ्लाइट” प्रतिक्रिया काम करती है। गाली देने से दिल की धड़कन तेज होती है, एड्रेनलिन बढ़ता है और दिमाग दर्द को कुछ समय के लिए कम गंभीर मानने लगता है। इससे व्यक्ति कठिन स्थिति का सामना ज्यादा मजबूती से कर पाता है।

हालांकि शोध में यह भी सामने आया कि यह असर उन लोगों में ज्यादा दिखा, जो रोजमर्रा की जिंदगी में कम गालियां देते हैं। जो लोग अक्सर गाली-गलौज करते हैं, उनके दिमाग पर इसका असर कम हो जाता है, क्योंकि वह पहले से ही उस उत्तेजना का आदी होता है। यानी गाली देना अगर कभी-कभार, खास हालात में हो, तभी उसका असर दिखाई देता है।

शोधकर्ता यह स्पष्ट करते हैं कि इस अध्ययन का मतलब गाली देने को सामाजिक या नैतिक रूप से सही ठहराना नहीं है। यह शोध केवल यह समझने की कोशिश है कि भाषा, भावनाएं और शरीर का प्रदर्शन आपस में कैसे जुड़े हुए हैं। सार्वजनिक और पेशेवर जीवन में गाली देने के सामाजिक नुकसान अब भी उतने ही गंभीर बने हुए हैं।