खून में बढ़े दोष बन सकते हैं बीमारियों की जड़, आयुर्वेद बताएगा प्राकृतिक शुद्धि के उपाय
- Post By Admin on Nov 10 2025
नई दिल्ली : आयुर्वेद के अनुसार शरीर में बहने वाला रक्त केवल जीवनदायिनी द्रव नहीं, बल्कि ऊर्जा, रंग और तेज का मूल आधार है। जब इसमें दोष (वात, पित्त, कफ) बढ़ जाते हैं, तो यही जीवनदायिनी शक्ति बीमारी की जड़ बन जाती है। इस स्थिति को रक्तदोष कहा जाता है।
विशेषज्ञों के मुताबिक पाचन की कमजोरी, असंतुलित आहार, तनाव और नींद की कमी रक्तदोष के प्रमुख कारण हैं। मसालेदार, तला-भुना या पैकेट फूड का अधिक सेवन, दवाइयों का अत्यधिक उपयोग, शराब, हार्मोनल असंतुलन और संक्रमण भी खून को दूषित कर देते हैं। इसका असर सबसे पहले त्वचा पर दिखता है — मुंहासे, खुजली, दाने, बालों का झड़ना, थकान और जोड़ों का दर्द जैसे लक्षण रक्त की अशुद्धि के संकेत हैं। लंबे समय तक यह समस्या लिवर और किडनी को भी प्रभावित कर सकती है।
आयुर्वेद में रक्त को “जीवनीय तत्व” कहा गया है, इसलिए इसे शुद्ध बनाए रखना बेहद आवश्यक है। आयुर्वेदिक ग्रंथों में कई ऐसे प्राकृतिक उपाय बताए गए हैं जो बिना किसी साइड इफेक्ट के खून को साफ करते हैं —
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नीम: सुबह खाली पेट नीम की पत्तियां या उसका काढ़ा लेने से रक्त की अशुद्धि दूर होती है।
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मंजिष्ठा: इसका चूर्ण दूध या गुनगुने पानी के साथ लेने से त्वचा रोगों और पिंपल्स में राहत मिलती है।
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त्रिफला: पाचन सुधारकर शरीर से टॉक्सिन्स को बाहर निकालता है।
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लहसुन और गिलोय: रोजाना दो कच्चे लहसुन की कलियां और सुबह गिलोय रस लेने से इम्युनिटी मजबूत होती है व खून शुद्ध रहता है।
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चुकंदर-गाजर का रस: हीमोग्लोबिन बढ़ाने और शरीर को डिटॉक्स करने में सहायक।
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नींबू-शहद वाला पानी: लिवर को साफ करता है और शरीर को हल्का महसूस कराता है।
आयुर्वेद के अनुसार केवल औषधियों पर निर्भर रहना पर्याप्त नहीं है। जीवनशैली में संतुलन लाना भी उतना ही आवश्यक है। इसके लिए नियमित रूप से गुनगुना पानी पीना, सादा भोजन करना, चीनी और मैदे वाले खाद्य पदार्थों से दूरी बनाना, हल्का व्यायाम व प्राणायाम (विशेषकर कपालभाति और अनुलोम-विलोम) करना जरूरी है। पर्याप्त नींद और तनाव से मुक्ति भी रक्त शुद्धि में अहम भूमिका निभाते हैं।