गरीबी मुक्त और आत्मनिर्भर समाज के लिए ज़कात अनिवार्य : अमीनुल हसन

  • Post By Admin on Feb 18 2025
गरीबी मुक्त और आत्मनिर्भर समाज के लिए ज़कात अनिवार्य : अमीनुल हसन

मुजफ्फरपुर : ज़कात सेंटर इंडिया, मुजफ्फरपुर की ओर से रविवार को एक महत्वपूर्ण सभा का आयोजन किया गया। इस सभा में स्थानीय लोगों के साथ-साथ पेशेवर, डॉक्टर्स, प्रोफेसर्स, व्यवसायी, महिलाएं और विद्यार्थी भी शामिल हुए। कार्यक्रम का विषय था "सामूहिक ज़कात प्रणाली – गरीबी मुक्त और आत्मनिर्भर समाज के लिए सामूहिक प्रयास।"

सभा में ज़कात सेंटर इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष एस अमीनुल हसन ने अपने संबोधन में कहा कि इस्लाम में ज़कात एक अनिवार्य इबादत है, जो धनाढ्य वर्ग पर एक चैरिटी टैक्स के रूप में लागू होती है। उन्होंने बताया कि हर मुसलमान के लिए अपने जमा धन का 2.5% हिस्सा हर साल ज़कात के रूप में देना अनिवार्य है। एस अमीनुल हसन ने ज़कात को एक संगठित तरीके से संग्रहित और वितरित करने पर जोर दिया और कहा कि जैसे नमाज़ और रोज़ा की व्यक्तिगत इच्छा से पालन नहीं किया जा सकता, वैसे ही ज़कात भी संगठित तरीके से ही दी जानी चाहिए।

इस अवसर पर मौलाना रिजवान अहमद इस्लाही ने ज़कात के सामूहिक वितरण की आवश्यकता पर बल दिया और चिंता जताई कि भारत में मुसलमान हर साल अरबों रुपये ज़कात देते हैं, लेकिन यह रकम जरूरतमंदों तक नहीं पहुँच पाती, जिसका मुख्य कारण संगठित कार्यप्रणाली का अभाव है।

ज़कात सेंटर इंडिया मुजफ्फरपुर के सचिव जनाब सय्यद अहमद ने संस्था की उपलब्धियों का उल्लेख किया और पिछले दो वर्षों के कार्यों की विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की। उन्होंने बताया कि मुजफ्फरपुर में ज़कात सेंटर इंडिया ने बेरोजगार युवाओं को रोजगार, गरीब विद्यार्थियों को स्कॉलरशिप, विधवा महिलाओं को पेंशन और व्यवसायिक रूप से कमजोर लोगों को पूंजी प्रदान की है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता ज़कात सेंटर इंडिया मुज़फ्फरपुर के अध्यक्ष डॉ. महमूदुल हसन ने की। इस मौके पर संस्था के सक्रिय कार्यकर्ता इरशाद हुसैन, मो. हैदर, मीडिया प्रभारी मो. इश्तेयाक, सरफराज आलम, हस्साम तारीक सहित लगभग 500 लोग उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन अशरफुल हक और धन्यवाद ज्ञापन हामिद हुसैन ने किया।

इससे पूर्व, जकात सेंटर इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष एस अमीनुल हसन ने स्थानीय माड़ीपुर में शहर के गणमान्य और बुद्धिजीवियों को संबोधित करते हुए सुझाव दिया कि पूरे शहर और जिले में एक साथ काम करने के बजाय, कुछ चिन्हित स्लम क्षेत्रों को मॉडल के रूप में विकसित किया जाए। उन्होंने ज़कात के पैसे को व्यक्तिगत या संस्थागत नहीं, बल्कि समाज के जरूरतमंद लोगों तक पहुंचाने की आवश्यकता पर भी जोर दिया।