शहीद खुदीराम बोस को नमन : 118वें शहादत दिवस पर जेल में गूंजे वंदे मातरम के स्वर
- Post By Admin on Aug 11 2025
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मुजफ्फरपुर : स्वतंत्रता संग्राम के अमर सेनानी शहीद खुदीराम बोस के 118वें शहादत दिवस पर सोमवार को मुजफ्फरपुर स्थित शहीद खुदीराम बोस सेंट्रल जेल परिसर में भावुक और भव्य श्रद्धांजलि समारोह का आयोजन हुआ। अहले सुबह से ही जेल का वातावरण देशभक्ति की भावना से सराबोर हो गया था। रंग-बिरंगी रोशनी से सजे परिसर में हल्दी और फूलों की महक फैली थी, वहीं बैकग्राउंड में धीमी आवाज में बज रहे राष्ट्रभक्ति गीत माहौल को और भी भावुक बना रहे थे।
सुबह करीब तीन बजे से ही लोग जेल के मुख्य द्वार पर पहुंचने लगे। हर किसी की आंखों में अपने वीर सपूत को नमन करने का उत्साह और गर्व साफ झलक रहा था। लोग आतुरता से गेट खुलने का इंतजार कर रहे थे ताकि वे उस पवित्र स्थल पर पहुंच सकें, जहां 11 अगस्त 1908 को सुबह 3:50 बजे 18 वर्ष से भी कम उम्र के इस क्रांतिकारी ने हंसते-हंसते फांसी के फंदे को चूमा था।
समारोह में मुजफ्फरपुर के जिलाधिकारी सुब्रत कुमार सेन, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक सुशील कुमार, एसडीपीओ टाउन सुरेश कुमार, एसडीओ पूर्वी और मिठनपुरा थानाध्यक्ष समेत कई प्रशासनिक और पुलिस अधिकारी मौजूद थे। सभी का जेल गेट पर स्वागत हुआ और हाथ पर मुहर लगाकर प्रवेश की अनुमति दी गई।
इस अवसर को खास बनाने के लिए पश्चिम बंगाल के मिदनापुर से भी एक विशेष दल पहुंचा। ये लोग शहीद के पैतृक गांव की मिट्टी, 101 राखियां और काली मंदिर का प्रसाद लेकर आए थे। फांसी स्थल पर मिट्टी में दो पौधे रोपे गए, जिन पर प्रसाद अर्पित कर शहीद को नमन किया गया। ठीक उसी समय—सुबह 3:50 बजे—मौजूद अधिकारियों और जनसमूह ने मौन श्रद्धांजलि और सलामी दी।
सेंट्रल जेल के पुराने रिकॉर्ड बताते हैं कि फांसी से पहले जब खुदीराम अपना गीत गा रहे थे, तो जेल के सभी बंदियों को अंदाजा हो गया था कि उन्हें बलिदान के लिए ले जाया जा रहा है। इसके बाद पूरा परिसर ‘वंदे मातरम’ और ‘भारत माता की जय’ के नारों से गूंज उठा था।
श्रद्धांजलि के बाद सभी लोग उस ऐतिहासिक कोठरी तक पहुंचे, जहां खुदीराम को अंतिम रात रखा गया था। मान्यता है कि आज भी इस स्थान पर उनकी आत्मा का वास है। श्रद्धालु जूते-चप्पल उतारकर, सिर झुकाकर और हाथ जोड़कर अंदर प्रवेश कर फूल चढ़ा रहे थे। दीवारों पर टंगी पुरानी तस्वीरें और उस समय की निशानियां सभी को आजादी की लड़ाई के उस निर्णायक अध्याय की याद दिला रही थीं।
डीएम सुब्रत कुमार सेन ने कहा, “इस जेल की दीवारें उनके अदम्य साहस और बलिदान की गवाह हैं। इतनी कम उम्र में देश की आजादी के लिए हंसते-हंसते फांसी पर चढ़ना युवाओं के लिए अमर प्रेरणा है। हमें उनसे न केवल देशभक्ति बल्कि त्याग और निस्वार्थ सेवा की भी सीख मिलती है। देश की एकता और अखंडता के लिए उनके आदर्शों पर चलना ही सच्ची श्रद्धांजलि होगी।”
समारोह के अंत में जेल परिसर में एक सामूहिक राष्ट्रगान हुआ, जिसमें उपस्थित हर व्यक्ति ने पूरे जोश के साथ अपनी आवाज मिलाई। इस दौरान आंखों में आंसू और दिल में गर्व, दोनों ही भाव एक साथ उमड़ पड़े। यह आयोजन केवल एक श्रद्धांजलि नहीं, बल्कि स्वतंत्रता की उस अनमोल विरासत को जीवित रखने का संकल्प था, जो शहीद खुदीराम बोस जैसे वीर सपूतों के बलिदान से संभव हुई।